पुरी में उत्सव / पूर्णिमा स्नान के लिए गर्भगृह से बाहर लाई गईं मूर्तियां, आज रात से 22 जून तक क्वारैंटाइन में रहेंगे भगवान जगन्नाथ
- उत्सव में शामिल 170 से ज्यादा पुजारी थे 12 दिन से होम क्वारेंटाइन
- अब रथयात्रा के लिए 23 जून को निकलेंगे भगवान
पुरी. जगन्नाथ पुरी में रथयात्रा के पहले का सबसे महत्वपूर्ण उत्सव पूर्णिमा स्नान शुक्रवार को हुआ। मंदिर के भीतर ही करीब 300 लोगों की मौजूदगी में मनाए गए इस उत्सव के लिए अलसुबह भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा देवी की प्रतिमाओं को गर्भगृह से बाहर लाया गया। स्नान मंडप में करीब 170 पुजारियों ने भगवान को 108 घड़ों के सुगंधित जल से स्नान कराया।
शुक्रवार शाम तक भगवान गर्भगृह से बाहर ही रहेंगे फिर 15 दिन के लिए वे क्वारैंटाइन यानी एकांतवास में रहेंगे। इस दौरान भगवान को औषधियां और हल्का भोग ही लगेगा। अब जगन्नाथ मंदिर में 23 जून को ही रथयात्रा के लिए भगवान क्वारेंटाइन से बाहर आएंगे। तब तक मंदिर में दर्शन बंद रहेंगे।
माना जाता है पूर्णिमा स्नान में ज्यादा पानी से स्नान के कारण भगवान बीमार हो जाते हैं। इसलिए उन्हें एकांत में रखकर औषधियों का सेवन कराया जाता है। पूर्णिमा स्नान में शामिल होने वाले सभी 170 पुजारियों को भी 12 दिन पहले से कोरोना टेस्ट के बाद से होम क्वारेंटाइन किया गया था। वे क्वारेंटाइन से निकलकर सीधे मंदिर पहुंचे।
श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन समिति के सदस्य और मंदिर के पुजारी श्याम महापात्रा के मुताबिक रात 12 बजे से भगवान के पूर्णिमा स्नान की तैयारियां शुरू हो गई थीं। भगवान की श्रीप्रतिमाओं को गर्भगृह से स्नान मंडप में लाया गया। यहीं सुबह से वैदिक मंत्रों के साथ स्नान की विधि शुरू हुई।
- सालभर में एक बार ही उपयोग होता है कुंए का पानी
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के पूर्णिमा स्नान के लिए मंदिर प्रांगण के उत्तर दिशा में मौजूद कुंए के पानी से लिया जाता है। इस कुंए का पानी पूरे साल में सिर्फ एक बार ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा पर इस स्नान के लिए ही उपयोग किया जाता है। कुंए को साल में सिर्फ एक बार खोला जाता है। बस एक दिन इस कुंए से पानी निकालकर इसे फिर से बंद कर दिया जाता है।
- कस्तूरी, केसर आदि औषधियों से स्नान
स्नान के लिए जो 108 घड़ों में पानी भरा जाता है, उनमें कई तरह की औषधियां मिलाई जाती हैं। कस्तूरी, केसर, चंदन जैसे सुगंधित द्रव्यों को पानी में मिलाकर पानी तैयार किया जाता है। सभी भगवानों के लिए घड़ों की संख्या भी निर्धारित है।
- शाम को गज श्रंगार
शाम को भगवान बलभद्र और जगन्नाथ का गजश्रंगार किया जाता है। इसमें भगवान के चेहरे हाथी जैसे सजाए जाते हैं। क्योंकि, एक बार भगवान ने यहां इसी स्वरूप में भक्त को दर्शन दिए थे। इसके बाद भगवान को फिर गर्भगृह में ले जाया जाएगा।