वैशाखी पूर्णिमा पर घरो में ही होगा इस वार पवित्र स्नान*

 वैशाख माह को पवित्र माह  माना गया है। यही कारण है कि इस पावन मास में पूर्णिमा को हज़ारों श्रद्धालु पवित्र तीर्थ स्थलों पर हजारों की संख्या में पहुँचकर नदियों में स्नान, दान कर पुण्य अर्जित करते हैं।  पर इस बार लोकडॉन और ट्रेन न चलने की बजह से पवित्र तीर्थ इस्थल पर सन्नाटा नजर आएगा। 

ज्योतिषाचार्य हुकुमचंद जैन ने जानकारी देते हुए कहा कि 

वैशाख पूर्णिमा गुरुवार 07 मई को इस बार है। पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व माना गया है। वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा या पीपल पूर्णिमा भी कहा जाता है। इसी दिन भगवान बुद्ध की जयंती और निर्वाण दिवस भी बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। 

वैशाखी पूर्णिमा बड़ी ही पवित्र तिथि है हजारों की संख्या में प्रति वर्ष पवित्र तीर्थ क्षेत्रो पर श्रद्धालु स्न्नान,दान ,पुण्य और धर्म कर्म के अनेक कार्य इस दिन करते हैं। परन्तु इस बार लॉकडाउन की बजह से घरो पर ही पवित्र गंगाजल को स्नान के जल में मिलाकर स्नान करके दान, पुण्य ,हवन कर पुण्य अर्जित करने से उसी प्रकार का पुण्य फल प्राप्त होगा।  इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। इसलिए हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है। यह 'सत्य विनायक पूर्णिमा' भी मानी जाती है। भगवान श्रीकृष्ण के बचपन के मित्र ब्राह्मण सुदामा जब द्वारिका उनसे मिलने पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने उनको सत्यविनायक व्रत का विधान बताया था। इसी व्रत के प्रभाव से सुदामा की सारी दरिद्रता जाती रही तथा वह सर्वसुख सम्पन्न हो गये।

 इस दिन हर देश में स्थानीय परंपराओं के हिसाब से इसे मनाया जाता है, जैसे कि श्रीलंका में इसे वेसाक कहा जाता है। इस दिन अहिंसा और सदाचार अपनाने का प्रण लिया जाता है। इस दिन मांसाहार भी नहीं किया जाता, क्योंकि महात्मा बुद्ध किसी भी तरह की हिंसा के खिलाफ थे। चीन, तिब्बत और विश्व के अनेक कोनों में फैले बौद्ध धर्म के अनुयायी इसे अपने अपने ढंग से मनाते हैं। बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान हिन्दू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान है। गृहत्याग के पश्चात सिद्धार्थ सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहां पर उन्होंने कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।

इस दिन बौद्ध घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाया जाता है। इस पर्व पर दुनियाभर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थना करते हैं। इस दिन बोधिवृक्ष की पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं पर हार व रंगीन पताकाएं सजाई जाती हैं। जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है और वृक्ष के आसपास दीपक जलाए जाते हैं। इस दिन पक्षियों को पिंजरे से मुक्त कर खुले आकाश में छोड़ा जाता है और गरीबों को भोजन व वस्त्र दान दिए जाते हैं।

जैन ने कहा इस प्रकार इस दिन अलग अलग पुण्य कर्म करने से अलग अलग फलों की प्राप्ति होती है। धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है कि इस दिन धर्मराज के निमित्त जलपूर्ण कलश और पकवान दान करने से गौ दान के समान फल प्राप्त होता है।  यदि इस दिन एक समय भोजन करके पूर्णिमा, चंद्रमा अथवा सत्यनारायण भगवान का व्रत करें तो सब प्रकार के सुख, संपदा और श्रेय की प्राप्ति होती है।