घर पहुंचे मजदूर / बेजान चेहरे और थके हुए शरीर बता रहे थे कि कितने मुश्किल से कटे दिन, अपने राज्य में पहुंचते ही मिला सुकून

घर पहुंचे मजदूर / बेजान चेहरे और थके हुए शरीर बता रहे थे कि कितने मुश्किल से कटे दिन, अपने राज्य में पहुंचते ही मिला सुकून




  • दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों को लेकर पहुंची श्रमिक ट्रेनें, अपने राज्यों में पहुंचते ही खिलखिला गए चेहरे

  • बोले- जो हुआ वो हुआ, सुकून इस बात का कि सुरक्षित अपने घर आ गए


नईदिल्ली. लॉकडाउन के बीच देश के दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों को लाने का सिलसिला शुरू हो चुका है। कई दिनों से दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों ने शनिवार को जब अपने ठिकानों पर कदम रखे तो सुकून की सांस ली। इनके चेहरे पर न गुस्सा था न ही आक्रोश था। इन्हें सरकार से कोई गिला-शिकवा भी नहीं। हर किसी के मन में इसी बात की तसल्ली थी कि, जो भी हुआ, जैसा भी हुआ, कम से कम अपने घर तो आ गए। 


पटना पहुंची ट्रेन के यात्रियों के हाल...


1200 से ज्यादा मजदूरों को लेकर पटना पहुंची ट्रेन
जयपुर से मजदूरों को लेकर निकली पहली ट्रेन शनिवार दोपहर 2 बजकर 6 मिनट पर पटना के दानापुर रेलवे स्टेशन पहुंची। इसमें 1200 से अधिक मजदूर थे। प्लेटफॉर्म नं. 5 पर खड़ी हुई इस ट्रेन के लिए कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी। प्लेटफॉर्म के रॉन्ग साइड पर भी पुलिस के जवान तैनात थे ताकि कोई यात्री दूसरी तरफ उतरकर कहीं चला न जाए।


डीएम, एसएसपी, एसपी समेत पुलिस और प्रशासन के कई बड़े अधिकारी मौजूद थे। यात्रियों को लाइन में एक दूसरे से दूरी बनाकर खड़ा किया गया और सोशल डिस्टेंसिंग को फॉलो करवाते हुए ही स्टेशन परिसर से बाहर करवाया गया। स्टेशन के नजदीक की स्थित रेलवे स्कूल के परिसर में सभी यात्रियों की स्क्रीनिंग हुई। यहां खाने का इंतजाम भी था। यहां से मजदूरों को उनके जिले के ब्लॉक में बने क्वारैंटाइन सेंटर तक बस से भेजा गया। मजदूरों को 21 दिन क्वारैंटाइन सेंटर में रहना होगा। इसके बाद ही अपने घर जा सकेंगे।


बेजान चेहरे, थके हुए शरीर बहुत कुछ बयां कर रहे थे
इन मजदूरों ने लॉकडाउन के 38 दिन कैसे काटे, यह उनके बेजान चेहरे और थके हुए शरीर को देखकर ही महसूस किया जा सकता था। लेकिन अपने राज्य में कदम रखते ही इन उदास चेहरों पर मुस्कान आ गई। खुशी इस बात की थी कि, आखिरकार जिंदा अपने घर पहुंच ही गए। लॉकडाउन में इन मजदूरों को काम ही नहीं मिला, इस कारण मजदूरी भी नहीं मिली।


थोड़े बहुत जो पैसे थे, उनसे कुछ दिन कट गए, बाद में तो खाने के भी लाले पड़े गए। इन्हीं में से किशनगंज के अशोक कुमार ने बताया कि, दो वक्त खाने की भी परेशानी हो गई थी। हमेशा बस मन में यही ख्याल रहता था कि कैसे भी अपने घर पहुंच जाएं, ताकि जिंदा रहें। जिस गांव में रहते थे, वहां के प्रधान से ट्रेन के बारे में जानकारी मिली। ट्रेन में खाने का इंतजाम भी सरकार की तरफ से किया गया था। किसी को टिकट भी नहीं लेना पड़ी। जयपुर में खाना मिला था, रास्ते में मिला। 


एक सीट पर एक आदमी को बैठाया गया 
बेतिया के झुन्ना कुमार बोले, शुक्र है। घर पहुंच गए। बोले, सफर काफी अच्छा रहा। एक सीट पर एक आदमी को बैठाया गया था। किसी प्रकार की परेशानी नहीं हुई। रास्ते में खाना-पानी भी मिला। रास्ते में हम लोग आपस में बात कर रहे थे कि किसी तरह अच्छे से अपने घर पहुंच जाएं। पटना पहुंच गए, अब राहत मिली।


रोहतास के गजाधर साह ने कहा कि, मैं नागौर जिले के लादेर में काम करता था। मेरी कंपनी के अधिकारी ने कहा कि ट्रेन जा रही है। गांव जाना है तो तैयार होकर आ जाओ। मैं अपने साथ काम करने वाले पांच लोगों के साथ आया हूं। कंपनी ने जयपुर तक पहुंचाने की व्यवस्था की। अब अपने राज्य में आकर सुकून मिला है। 


पुलिस से मिली ट्रेन की सूचना
अजमल अली बोले, मैं नागौर जिले में काम करता था। पुलिस ने सूचना दी कि एक ट्रेन बिहार जाने वाली है। जयपुर तक पहुंचाने के लिए बस की व्यवस्था की गई। सभी मजदूरों के नाम की लिस्ट पहले से बनी थी। उसी लिस्ट के अनुसार हम लोगों को बस पर सवार किया गया। मैं वहां सीमेंट प्लांट में काम करता था। मजदूरों ने घर भेजने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन भी किया था। आखिरकार हम घर आ गए। बोले, मेरी पत्नी और बच्चे चिंता में रो रहे थे। मुझे उनकी भी हरदम चिंता सता रही थी। 


घर पहुंचकर बहुत खुश हूं
रोहतास के ही अमित कुमार ने कहा कि, मैं नागौर जिले के मूण्डवा में एक फीटर के साथ काम करता था। कंपनी के लोगों से ट्रेन के बारे में जानकारी मिली। सफर में कोई परेशानी नहीं हुई। जयपुर में खाना खाकर ट्रेन में सवार हुए थे, फिर मुगलसराय में खाना मिला। बहुत खुशी की बात है कि अपने घर आ गया हूं। एक माह से अधिक समय से लॉकडाउन में फंसा था।


रांची पहुंची ट्रेन के यात्रियों के हाल...


हैदराबाद के लिंगमपल्ली स्टेशन से रांची के हटिया स्टेशन पर स्पेशल ट्रेन के जरिए शुक्रवार रात को 1200 प्रवासी मजदूरों को लाया गया। यहां सभी मजदूरों की थर्मल स्क्रीनिंग की गई। फिर उन्हें बसों के जरिए सोशल डिस्टेंसिग का पालन करते हुए उनके घर भेज दिया गया। अलग-अलग जिलों में शनिवार सुबह मजदूरों के पहुंचने के बाद उनकी फिर से स्क्रीनिंग की गई और फिर उन्हें एहतियातन होम क्वारैंटाइन कर दिया गया। घर पहुंचे दो मजदूरों की कहानी, उन्हीं की जुबानी-


ऐसा लगा गार्ड मजाक कर रहा है
चतरा जिला के पत्थलगड़ा थाना क्षेत्र निवासी उदय राम भी हैदराबाद की ट्रेन में सवार होकर घर पहुंचे हैं। बोले, हैदराबाद में मैं जिस कंपनी में काम करता हूं, वहां पास में ही एक कॉलोनी है जहां बिहार और बंगाल के भी मजदूर रहते हैं। गुरुवार को हम सभी करीब 9 बजे के बाद खाना खाकर सोने की तैयारी कर रहे थे।


तभी कॉलोनी के गार्ड ने आकर बताया कि जिसे झारखंड जाना है, सामान लेकर बाहर आ जाओ, झारखंड के लिए ट्रेन जाने वाली है। पहले मुझे लगा कि गार्ड मजाक कर रहा है। फिर थोड़ी देर बाद वो बाहर आकर देखा तो मजदूर लाइन लगा रहे थे। पुलिस भी थी। मैं भी अंदर गया। 10 मिनट में जल्दी-जल्दी अपना सामान पैक किया और बाहर खड़ा हो गया। वहां पुलिस ने मुझसे आधारकार्ड मांगा। कागजात चेक किए और फिर लाइन में खड़ा कर दिया। 


रास्त में खाना-पानी मिला, सफाई भी थी
थोड़ी देर बाद वहां बस आई जिससे एक फीट की दूरी पर हम लोगों को बिठाया गया और रेलवे स्टेशन ले जाया गया। यहां भी स्टेशन के बाहर एक-एक फीट की दूरी पर खड़ा किया। फिर सभी के हाथ सैनिटाइज कराए गए और थर्मल स्क्रीनिंग हुई। पुलिस ने एक-एक करके स्टेशन के अंदर एंट्री दी। ट्रेन के पास एक प्रशासन का कर्मचारी खड़ा था जिसने हमें बस की तरह टिकट फाड़ कर दिया।


अंदर स्लीपर बोगी में एक सीट पर एक आदमी को बैठाया गया। रास्ते के लिए खाना, पानी भी दिया गया। कहीं भी रुपए नहीं देने पड़े। बाथरुम वगैरह सबकुछ साफ था। नियम भी पहले की तरह था। लेकिन नया ये था कि हर बार स्लीपर बोगी में साबुन नहीं रहता था, इस बार साबुन भी था। पूरी ट्रेन में सिर्फ झारखंड के लोग सवार थे, वहां कोई नहीं छूटा है। हां बिहार और बंगाल के लोग वहीं रह गए। जब से लॉकडाउन लगा तब से ही मैं घर जाने का इंतजार कर रहा था। ट्रेन में सब कोरोनावायरस को लेकर ही बातचीत करते सुनाई दिए।


साहब ने बताया कि ट्रेन जा रही है
चतरा जिले के पत्थलगड़ा थाना क्षेत्र के बेलहर गांव निवासी रंजन दांगी भी ट्रेन से लौटने वालों में हैं। उन्होंने कहा- हैदराबाद में मुझे मेरे ऑफिस के साहब ने बताया कि झारखंड के लिए जाना है तो बाहर निकलो। वह भी हैदराबाद में उसी कालोनी में रहते हैं। उस वक्त रात के 11 बज रहे थे। बाहर निकले तो हमें बस में बिठाया गया और फिर लिंगमपल्ली ले जाया गया। यहां आने के बाद पता चला कि हमें ट्रेन से ले जाया जाएगा। स्टेशन पर मेडिकल जांच हुई। बस में एक सीट पर एक ही आदमी को बिठाया गया था। 


पूड़ी-सब्जी और दाल-चावल खाने में मिला
ट्रेन के अंदर रांची तक पहुंचने में तीन टाइम खाना और पानी मिला। पानी की पांच-पांच बोतल मिली थी। दो बार चावल दाल और एक बार पूड़ी सब्जी दी गई। किसी भी चीज के लिए हमें एक रुपए भी नहीं देने पड़े। ट्रेन में हमें हिदायत दी गई थी टॉयलेट के अलावा कोई अपनी जगह से ईधर-उधर नहीं जाएगा। हमेशा मुंह पर मास्क लगाकर रखना है। किसी से कोई बातचीत नहीं करना है।


लिंगमपल्ली से चलने के बाद सिर्फ एक जगह ट्रेन रूकी थी। जहां खाना लिया गया था। फिर ट्रेन आगे चल पड़ी। मेरे दो जानकार वहां रह गए हैं। हम महीनों से घर जाने का इंतजार कर रहे थे। वहां खाने की कोई दिक्क्त नहीं थी। लेकिन डर लगता था। बार-बार बस घर जाने का ही मन करता था।