शिवराज का नैनो मंत्रिमंडल / महज 5 मंत्रियों के लिए सोशल इंजीनियरिंग साधी, लेकिन न तो सिंधिया के गढ़ के नेता और न ही विजयवर्गीय समर्थक विधायक पद पा सके

शिवराज का नैनो मंत्रिमंडल / महज 5 मंत्रियों के लिए सोशल इंजीनियरिंग साधी, लेकिन न तो सिंधिया के गढ़ के नेता और न ही विजयवर्गीय समर्थक विधायक पद पा सके




  • तस्वीर 23 मार्च की है जब शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। शपथ लेने के बाद वो सीधे अधिकारियों से मीटिंग करने पहुंचे थे।तस्वीर 23 मार्च की है जब शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। शपथ लेने के बाद वो सीधे अधिकारियों से मीटिंग करने पहुंचे थे।





  • शिवराज के नए मंत्रिमंडल में ब्राह्मण, ठाकुर, ओबीसी और दलित और आदिवासी वर्ग के नेताओ  को मंत्री बनाया

  • शिवराज के मंत्रिमंडल में प्रदेश की राजनीति में  जातीय समीकरणों का साधने का पूरा प्रयास किया 

  • मालवा-निमाड़ से सिलावट, चंबल ग्वालियर से नरोत्तम, बुंदेलखंड से गोविंद सिंह, नर्मदांचल से कमल पटेल, जबलपुर संभाग से मीना सिंह को मौका


भोपाल. चौथी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान के शपथ लेने के 28 दिन बाद बने नैनो मंत्रिमंडल में बड़ी सोशल इंजीनियरिंग नजर आ रही है। इस सोशल इंजीनियरिंग की वजह से भाजपा में मंत्री बनने की आस लगाए बैठे कई वरिष्ठ नेताओं को तरजीह नहीं दी गई। हालांकि, अभी ये कहना जल्दबाजी होगी कि इससे मंत्री बनने की आस लगाए बैठे भाजपा नेताओं में असंतोष है। लेकिन, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय नेतृत्व के नैनो मंत्रिमंडल का फैसला हैरान जरूर करता है।


शिवराज ने अपने मंत्रिमंडल में प्रदेश हर वर्ग को साधने की कोशिश की है। इसमें ब्राह्मण, ठाकुर, ओबीसी और दलित और आदिवासी वर्ग के नेताओं को मंत्री बनाया है। मंत्रिमंडल में दो सिंधिया समर्थक मंत्री हैं लेकिन उनके गढ़ ग्वालियर-चंबल संभाग से उनके किसी समर्थक को जगह नहीं मिली। उसकी जगह नरोत्तम मिश्रा इस क्षेत्र से मंत्री बनेे। भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के खेमे के विधायकों को भी कैबिनेट में जगह नहीं मिली। उनके गढ़ निमाड़-मालवा से सिंधिया समर्थक तुलसी सिलावट मंत्री बने।


ऐसी है शिवराज की सोशल इंजीनियरिंग



  1.  नरोत्तम मिश्रा: दतिया से विधायक नरोत्तम भाजपा कद्दावर नेता है। सामान्य वर्ग से आते हैं। शिवराज सरकार के पिछले 3 कार्यकाल में में भी मंत्री रह चुके हैं। केंद्रीय नेताओं से अच्छे संपर्क और ग्वालियर-चंबल संभाग की भविष्य की राजनीति को साधने के लिए पहली बार में मंत्री बनाए गए। 

  2. तुलसी सिलावट: अनुसूचित जाति वर्ग से आते हैं। मालवा क्षेत्र के बड़े नेताओं में शुमार हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे खास व्यक्ति माने जाते हैं। कमलनाथ सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं। तुलसी सिलावट के भाजपा में शामिल होने के बाद पार्टी को अनुसूचित जाति वर्ग का एक बड़ा नेता मिल गया है। हालांकि, ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के डॉ. प्रभुराम चौधरी भी इसी वर्ग से आते हैं। 

  3. गोविंद सिंह राजपूत: बुंदेलखंड के बड़े ठाकुर नेताओं में एक हैं। सागर जिले की सुरखी विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं। सिंधिया खेमे के रसूखदार ठाकुर नेता होने की वजह से मंत्री बनाए गए। कमलनाथ सरकार में ये राजस्व मंत्री रह चुके हैं।  

  4. मीना सिंह: अनुसूचित जनजाति वर्ग से आती हैं। महिला और आदिवासी वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं। आदिवासी बाहुल्य उमरिया जिले से विधायक हैं।

  5. कमल पटेल: ओबीसी वर्ग से आते हैं। शिवराज और कैलाश विजयवर्गीय के करीबी माने जाते हैं। पहले भी मंत्री रह चुके हैं। हरदा से विधायक हैं।


बड़े नाम मंत्री क्यों नहीं बने?
भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि रविवार दोपहर तक मंत्रिमंडल में गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह को शामिल किया जाना तय माना जा रहा था, लेकिन देर शाम तक दोनों को होल्ड कर दिया गया। इसकी दो वजह भी बताई जा रहीं हैं। पहली जातिगत और दूसरी क्षेत्रीय संतुलन। अगर शिवराज अपने मंत्रिमंडल में पार्टी के वरिष्ठ नेता गोपाल भार्गव को शामिल करते तो उनके मंत्रिमंडल में दो ब्राह्मण मंत्री होते। यदि भूपेंद्र सिंह को शामिल किया जाता तो गोविंद सिंह राजपूत को मिलाकर दो ठाकुर मंत्री होते। इसके अलावा दूसरी वजह जो बताई जा रही है, उसके अनुसार अकेले सागर संभाग से ही तीन मंत्री बनने से भी पद आस लगाए विधायकों और ज्योतिरादित्य खेमें के पूर्व मंत्रियों को अच्छा संदेश नहीं जाता।


ग्वालियर-चंबल संभाग में धमासान के आसार


सूत्रों का कहना है कि आने वाले समय में सबसे ज्यादा राजनीतिक धमासान ग्वालियर-चंबल संभाग में ही देखने को मिल सकता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के जो विधायक कमलनाथ सरकार में मंत्री थे, उनका मंत्री बनना तय है। इसमें से चार ग्वालियर-चंबल संभाग से ही आते हैं। इसके अलावा एंदल सिंह कंसाना और रघुराज कंसाना सिंधिया समर्थक तो नहीं हैं, लेकिन कांग्रेस छोड़कर मंत्री बनाए जाने आश्वासन पर ही भाजपा में आए। ऐसे में यहां भाजपा नेताओं का क्या होगा और उनकी अगली रणनीति क्या होगी, इस पर भी कयास लगाए जा रहे हैं। ग्वालियर के ही कुछ वरिष्ठ नेता सिंधिया समर्थकों के पार्टी में आने और उन्हें मत्री बनाए जाने से खुश नहीं हैं।