बच्चे खुश रहने के लिए स्कूलों में सीखेंगे गुस्से से आजादी का मोल


जबलपुर। बचपन कच्चे घड़े के समान होता है। शिक्षा-संस्कार और परिवेश की चकरी में जैसा ढालो वैसा ही मूर्त रूप लेता है। बच्चों के कोमल मन पर उनके अभिभावकों, शिक्षकों और अन्य बड़ी उम्र के लोगों का सीधा प्रभाव पड़ता है। वे जैसा लगातार देखते हैं, वैसा ही उनका आचरण उनका भी विकसित होता है। घरों में अभिभावकों और स्कूलों में शिक्षकों की डांट-डपट के चलते बच्चे भी गुस्सैल होने लगे हैं। जिसका नतीजा हिंसक घटनाओं में तब्दील होता है।


बच्चों में बढ़ती इस नकारात्मक मनोवृत्ति को रोकने के लिए अब केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल (सीबीएसई) ने सकारात्मक पहल की है। इसके अंतर्गत स्कूलों में शिक्षक, अभिभावक या फिर कोई प्रशासनिक कर्मचारी अब कोई भी गुस्सा नहीं कर सकेंगे। इसका मकसद बच्चों को गुस्से से आजादी का मोल समझाना है। इस संबंध में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने संबद्ध स्कूलों को जरूरी दिशा-निर्देश जारी करते हुए सभी मान्यता प्राप्त स्कूलों से कहा है कि वे स्कूल परिसर को क्रोधमुक्त जोन बनाएं। ऐसी जगह जहां शिक्षक, अभिभावक व प्रशासनिक अधिकारी सभी अपने गुस्से पर नियंत्रण करने की कोशिश करेंगे और बच्चों के लिए अच्छा उदाहरण पेश करेंगे। इस तरह से बच्चों को गुस्से से आजादी का मोल समझाएंगे। यह नई व्यवस्था विशेषत: कक्षा 4 से लेकर 12 तक बच्चों और समूचे स्कूल स्टाफ के लिए है।


बच्चों को खुश रखना मकसद
बच्चों को गुस्सैल स्वभाव से दूर रखने के पीछे सीबीएसई की मंशा एक ऐसे परिवेश का निर्माण करना है, जिसमें बच्चे हर दम खुश रखना है। बोर्ड का कहना है कि इससे विद्यार्थियों को मानसिक तौर पर सक्रिय और भावनात्मक रूप से स्वस्थ रहने में मदद मिलेगी। वे ऊर्जावान और खुश होकर घर जा सकेंगे और अगले दिन वापस स्कूल आना भी चाहेंगे।


सोशल मीडिया पर करेंगे साझा
सीबीएसई ने क्रोधमुक्त जोन बनाने के लिए संबद्ध स्कूलों को जो दिशा-निर्देश जारी किए हैं, उनके अनुसार स्कूलों को इस प्रयोग का अनुभव अपने रिकॉर्ड में रखना है और उसके बारे में सोशल मीडिया पर हैशटैग सीबीएसई नो एंगर के साथ बताना है। स्कूलों को अपने परिसर में बोर्ड लगाना है जिसपर लिखा होगा-यह क्रोधमुक्त क्षेत्र है।


शहर के स्कूलों में शुरू हुए प्रयास
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल के निर्देश के बाद शहर समेत क्षेत्रीय कार्यालय के अंतर्गत आने वाले सभी मान्यताप्राप्त स्कूलों में क्रोधमुक्त जोन बनाने के प्रयास शुरू कर दिए गए हैं। प्राचार्यों द्वारा शिक्षकों को हिदायत दी जा रही है कि वे बच्चों के साथ नरमी व प्रेम के साथ पेश आएं। यदि उन्होंने कोई गलती की है तो, उन्हें इस तरह समझाएं कि उनके मन-मस्तिष्क में विपरीत असर न पड़े।



अभिभावक-शिक्षक भी होंगे तनावमुक्त
सीबीएसई स्कूलों को क्रोधमुक्त जोन बनाने से सबसे अधिक फायदा व्यावसायिक व अन्य घरेलू समस्याओं से जूझते अभिभावकों-शिक्षकों को भी होगा। इससे उनकी कार्यक्षमता में सुधार होगा। शिक्षाविदों व मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इस पहल से पैरेंट्स-टीचर्स को तनावमुक्त होने का अवसर मिलेगा। चूंकि क्रोधमुक्त जोन में उन्हें ही सबसे पहले पहल करना है, इसलिए उनमें धैर्य, संयम की प्रवृत्ति भी विकसित होगी। जब इनका स्वयं पर नियंत्रण हो जाएगा तो निश्चित तौर पर बच्चा भी इन्हीं की तरह आचरण करेगा। बच्चे में खुश रहने की प्रवृत्ति बढ़ेगी।


सबके लिए फायदेमंद है ये जोन
बच्चा अपने से बड़ों के आचरण से ही सीखता है। गुस्सा हर तरह की बीमारी की वजह है। आज कई कारणों से घरों में माता-पिता झगड़ते हैं, गुस्सा होते हैं। इन सबका बच्चे के विकास पर बुरा असर पड़ता है। जब यही बात स्कूलों में दोहराई जाती है और उसे डांट पड़ती है, तो बच्चा हीन भावना का शिकार होने लगता है। धीरे-धीरे बच्चे में भी गुस्से की प्रवृत्ति घर कर लेती है। जिद्दीपन, मारपीट से वह हिंसक होने लगता है। सीबीएसई ने यदि हंगर फ्री जोन (क्रोधमुक्त परिसर) बनाने की पहल की है, तो ये निश्चित रूप से प्रशंसनीय है। इसका फायदा बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों, अभिभावकों सभी को होगा।


बच्चों का विकास करना है लक्ष्य
सीबीएसई के दिशा-निर्देश प्राप्त हो चुके हैं। इसके अंतर्गत शहर समेत रीजन के स्कूलों में क्रोधमुक्त जोन बनाने की तैयारी शुरू हो गई है। यह बहुत अच्छा प्रयास है। इसका मकसद बच्चों में डर व हीन भावना को समाप्त कर उन्हें निडर, आत्मविश्वासी और अनुशासनप्रिय बनाना है। हमने अपने शिक्षकों को भी इस संबंध में निर्देशित कर दिया है कि बच्चा यदि गलतियां करता है, तो उस पर गुस्सा न दिखाएं, बल्कि उसे प्यार समझाएं। क्रोधमुक्त जोन से सकारात्मक परिणाम आने की उम्मीद है। हालांकि इसके लिए शिक्षकों के साथ-साथ घरों में अभिभावकों को भी अपने व्यवहार में परिवर्तन लाना होगा। ताकि बच्चे के व्यक्तित्व विकास में मदद मिल सके। वह अच्छा नागरिक बन सके।
- डॉ. राजेश चंदेल, सिटी को-ऑर्डिनेटर, सीबीएसई जबलपुर-मंडला


बच्चों के आत्मविश्वास को कम करता है गुस्सा
बच्चों में बढ़ती गुस्सैल प्रवृत्ति पर अब तक कई शोध हो चुके हैं। प्राय: सभी में ये निष्कर्ष सामने आया है कि अभिभावकों का मारना-पीटना, गुस्सा करना बच्चों के आत्मविश्वास पर असर डालता है। उनमें हिंसक प्रवृत्ति को जन्म देकर अवसाद का शिकार बना देता है। बाल मनोवैज्ञानिकों के अनुसार ऐसे बच्चे जो घर में शारीरिक, मानसिक प्रताडऩा के शिकार होते हैं, उनकी स्वजनों से दूरी बढऩे लगती है। वे अंतर्मुखी होकर हिंसक मनोवृत्ति के आदी बन जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की वर्ष 2017 में आई रिपोर्ट भी इसी बात की पुष्टि करती है।


गुस्सा हर चीज का इलाज नहीं
शहर के मनोवैज्ञानिक रजनीश जैन के अनुसार घर हो या स्कूल अक्सर गुस्सा या मारपीट से पैरेंट्स-शिक्षक बात मनवाते कम हैं और अपना नुकसान ज्यादा करते है। इससे आप का मानसिक सुकून तो खोता ही है बच्चे का व्यक्तित्व पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यदि हम बच्चों को प्यार से समझाएं तो उसका प्रभाव अच्छा होगा।


इंटरनेशनल एजेंसी के सुझाव
इंटरनेशनल नेटवर्क फॉर चिल्ड्रन एंड फैमिलीज के अनुसार बच्चों के व्यवहार को सुधारने के लिए और खुद की अपनी इस हरकत पर अंकुश लगाने के लिए कुछ बातों पर ध्यान देना जरूरी है।
- बच्चे यदि गलती करते हैं तो उनके साथ हिंसा के बजाय प्यार से पेश आएं। आप भूलकर भी अपनी व्यक्तिगत समस्याओं-परेशानियों का गुस्सा बच्चों पर न निकालें।
- बच्चों को जीवन में अनुशासन का महत्व जरूर बताएं। उन्हें पढ़ाई-लिखाई के साथ दूसरों के आगे अनुशासन और कायदे से पेश आने की बातें सिखाएं। ध्यान रखें कि बच्चों अन्य से तुलना न करें।
- अभिभावक खुद के लिए पर्याप्त समय निकालें। जीवन को सुकून के साथ जिएं। व्यायाम करने, पढऩे, टहलने और मनोरंजन के लिए समय जरूर निकालें ताकि वे बच्चों के आगे झल्लाया हुआ व्यवहार न करें।
- अभिभावक उस समय ज्यादा गुस्सा करते हैं जब बच्चा बार-बार उनके द्वारा दी गई हिदायतों को नहीं मानता। ऐसे में बच्चे को प्यार से कम शब्दों में समझाएं। झल्लाएं या चिल्लाएं नहीं। गुस्सा भी न दिखाएं।