अपराधी को सभी अपराधी दोस्त लगते हैं

(प्रज्ञा साध्वीके सम्बन्ध  में )


डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल 

                          एक राजकुमारी की शादी के लिए राजकुमार आया .राजकुमारी के पिता ने अपनी बेटी के साथ अन्य दासियों को भी तैयार किया .राजकुमार के सामने यह समस्या थी की कौन हैं असली राजकुमारी .इसके लिए राजकुमार ने अलग लग इंटरव्यू लिए .एक राजकुमारी कमरे में आयी तो राजकुमार ने बोला एक गिलास पानी लाओ तो वह फ़ौरन  बाहर पानी लेने गयी .पानी लेकर आने बाद वह चली गयी तब दूसरी राजकुमारी कमरे में आयी तब राजकुमार ने पानी पीते पीते कुछ पानी धरती पर गिराया तब उसने फ़ौरन अपना पल्लू से धरती का अपनी पोछा .इसके बाद तीसरी राजकुमारी आयी तो राजकुमार बोला मुझे गर्म दूध चाहिए .इस पर राजकुमारी ने ताली बजाकर बाहर से दासी को बुलाया ,तब राजकुमार ने राजकुमारी को पहचान लिया .यानी संस्कार अपने आप बोलते हैं .चाहे आप किसी  भी पद पर रहो पर संस्कार नहीं छूटते .
                         चाणक्य ने भी लिखा हैं की दुर्जन मनुष्य कभी भी सज्जन नहीं बन सकता जैसे ---- कितना भी धोया जाय मुख नहीं बन सकता .साधु अपना स्वाभाव नहीं छोड़ता और बिच्छु अपना स्वाभाव नहीं  छोड़ सकता हैं .
                          सांसद महोदय के अंदर इतनी कलुषता भरी हैं की उनमे दानव और मानव में अंतर नहीं समझ में आता. क्यों वे अपने आपको साध्वी कहती हैं .साधु वह होता हैं जो राग द्वेष से दूर ,वह न किसी से यश अपयश की अपेक्षा रखता हैं .पर माननीय में ऐसे कोई भी लक्षण नहीं दिखाई देते जैसे वे साध्वी हो .लगता हैं जैसे एक चोला पहन रखा हैं .मुर्ख यदि विद्वानों की सभा में मौन बैठा रहे तो वह भी विद्वान् मान लिया जाता हैं पर उसने बोला तो उसकी कलईखुल जाती हैं .इसी प्रकार कही किसी को श्राप देना .किसी को कहना की मैं सांसद नाली साफ़ करने थोड़ी बनी हूँ कहीं महात्मा गाँधी के हत्यारे को देश भक्त कहना .इस प्रकार के वक्तव्य से उनका व्यक्तित्व साफ़ झलकता हैं की उनमे कितने कैसे संस्कार हैं .या जानभूझकर बोलना ,विवाद पैदा करना जिससे समाचार पत्रों में स्थान पाना .
                        वैसे सच कहा गया हैं जैसे संगत वैसी रंगत .वर्षों अपराधियों के बीच में रहने से आपराधिक प्रवत्ति पैदा हुई .इसमें उनका दोष नहीं हैं .वैसे जो भी बोलना बुलंदी से बोलना .पर सच को कहने का ढंग बदलना चाहिए .सत्य वह होता हैं जो हितकारी हो ,मित हो और प्रिय हो .मुझे उनकी बुद्धि पर तरस आता हैं जब विश्व गाँधी जी की १५० वी जन्म जयंती मना रहा हैं और एक जिम्मेदार निर्वचेत प्रतिनिधि उनके हत्यारे को देश भक्त कहे इससे विद्रूप मानसिकता का बोध प्रगट होता हैं .
                     राग द्वेष का गलत ,मन में रखना भाव .
                     बैर किसी से मत रखो ,सबसे करो लगाव .
                     वाणी ऐसी बोलिये ,लगे जलेबी -खीर 
                     जो वाणी आघात से ,समझो उसको तीर .
                     सत्य अहिंसा धरम को ,रखो हमेशा याद 
                   दुखी किसी को मत करो ,रहना यदि आबाद 
                      यही निवेदन आपसे करो पद का सम्मान 
                       नहीं कोई भी पूछता पद जाने के बाद 
                          डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल 9425006753


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