संवैधानिक नियुक्तियां और निरस्तगी कितनी सही कितनी गलत? हाईकोर्ट पहुंचा मामला

संवैधानिक नियुक्तियां और निरस्तगी कितनी सही कितनी गलत? हाईकोर्ट पहुंचा मामला



जबलपुर। मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष आनंद अहिरवार और सदस्य प्रदीप अहिरवार ने एक याचिका दायर करते हुए शिवराज सरकार द्वारा उनकी नियुक्तियों  को निरस्त किए जाने के फैसले को कठघरे में रख दिया है। याचिका के माध्यम से उनकी नियुक्तियों को निरस्त करने की प्रक्रिया को असंवैधानिक करार देते हुए उसे निरस्त करने की मांग की गई है। मामले की प्राथमिक सुनवाई करते हुए अदालत ने सरकार द्वारा मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष आनंद अहिरवार और सदस्य प्रदीप अहिरवार की नियुक्ति निरस्तगी संबंधी आदेश पर स्टे जारी किया है। इसके साथ ही पूरे मामले मे सरकार से जवाब भी मांगा है।

बिना प्रक्रिया के पालन किए नियुक्ति की दी गई निरस्त
याचिका में तर्क दिया गया है कि आयोग के अध्यक्ष जैसे संवैधानिक पद पर की गई नियुक्ति को सिर्फ एक साधारण आदेश जारी करते हुए उसे निरस्त किया गया है जो गलत है। अध्यक्ष और सदस्य को हटाने के लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना पड़ता है। इसके साथ ही जिस भी कारण से उन्हे पद से हटाया जा रहा है उसकी सुनवाई का भी मौका दिया जाता है। लेकिन किसी भी प्रक्रिया का पालन किए बगैर सत्ता में आते ही संवैधानिक पद पर हुई नियुक्तियों को निरस्त किया गया है। मामले की अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी।

कमलनाथ सरकार ने संवैधानिक पदों पर की थी नियुक्तियां
गौरतलब है कि कमलनाथ सरकार ने जाते-जाते कई संवैधानिक पदों पर नियुक्तियां की थी जिनमें मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष आनंद अहिरवार और सदस्य प्रदीप अहिरवार भी शामिल थे। इन्हें 15 मार्च को नियुक्त किया गया था। फिलहाल हाईकोर्ट का स्टे हो जाने से कानूनन तौर पर अहिरवार आयोग के अध्यक्ष बने रहेंगे।


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