फ्लाइट से रांची पहुंचे मजदूर / न पैसे थे, न पैदल चलने की हिम्मत; लोगों की मदद से हवाई सफर किया, घर पहुंचकर धरती को प्रणाम किया

फ्लाइट से रांची पहुंचे मजदूर / न पैसे थे, न पैदल चलने की हिम्मत; लोगों की मदद से हवाई सफर किया, घर पहुंचकर धरती को प्रणाम किया




  • 180 प्रवासी मजदूरों ने पहली बार हवाई यात्रा की, गुरुवार को मुंबई से रांची पहुंचे

  • मजदूरों ने कहा- लॉकडाउन की मुसीबत के बीच हवाई जहाज से घर जाना एक सपने जैसा


रांची. लॉकडाउन के कारण मुंबई में फंसे झारखंड के 180 मजदूरों के आज 2 सपने पूरे हो गए। एक तो वे इस मुश्किल समय में अपने घर पहुंच गए, दूसरा जीवन में पहली बार हवाई यात्रा करने का मौका मिला। इनके पास घर आने के लिए ट्रेन का टिकट लेने तक के पैसे नहीं थे। पैदल आने की भी हिम्मत नहीं थी, ऐसे में नेशनल लॉ स्कूल, बेंगलुरु के पूर्व छात्रों ने इन्हें हवाई जहाज में बैठाकर रांची पहुंचाया। एयरपोर्ट पर उतरते ही सबने धरती मां को प्रणाम किया और कहा- अब कमाने बाहर नहीं जाएंगे।

मददगारों ने कहा- हमारा नाम उजागर न करें, यह अपनी संतुष्टि के लिए किया
मजदूरों की मदद करने वाले पूर्व छात्रों ने बताया कि उन्हें आईआईटी मुंबई के पास मजदूरों के फंसे होने की जानकारी मिली थी। इसके बाद ग्रुप के सारे सदस्यों ने उन्हें फ्लाइट से भेजने की योजना बनाई और पैसा जुटाया। कुछ एनजीओ और पुलिस ने भी टिकट बुक करवाने में मदद की। मजदूरों की मदद करने वाले छात्र 2000-2001 बैच के हैं। वे नहीं चाहते कि उनके नाम सामने आएं। उनका कहना है- यह मदद हमने अपनी अपनी संतुष्टि के लिए की है, नाम कमाने के लिए नहीं।


अब अपनी धरती पर आ गया हूं, खुश हूं


चतरा के रहने वाले मो. मुर्शिद अंसारी बताते हैं कि वे लेडीज सूट की कटिंग का काम करते थे। लॉकडाउन में सब बंद हो गया तो समस्याएं शुरू हो गईं। उन्होंने कहा कि फ्लाइट में तो मैंने जीवन में पहली बार सफर किया। अब अपनी धरती पर आ गया हूं, खुश हूं। वापस नहीं जाऊंगा। यहीं पर कुछ काम करूंगा।


गांव में ही रहेंगे और यहीं पर कुछ करेंगे


चक्रधरपुर निवासी सरगल और देवेंद्र हेंब्रम मुंबई में मजदूरी किया करते थे। लॉकडाउन में समस्या हुई, लेकिन घर वापसी का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। ट्रेन या किसी अन्य वाहन का किराया देने के पैसे भी नहीं थे। वे हैरान है कि उन्हें इसे मश्किल समय में हवाई यात्रा का मौका मिला। सरगल का कहना है कि अब वापस नहीं जाएंगे, गांव में ही रहेंगे और यहीं पर कुछ करेंगे।


पहली बार फ्लाइट से सफर किया


हजारीबाग निवासी विनोद दांगी कपड़ा मिल में काम करते थे। लॉकडाउन में काम बंद हो गया और घर से निकलना भी। विनोद ने बताया कि तनख्वाह तक नहीं मिली। सेठ ने पैसे नहीं दिए। बहुत दिक्कत से रह रहा था मुंबई में। खाने को भी नहीं मिल रहा था। पहली बार फ्लाइट से सफर किया, बहुत अच्छा लगा। अब मैं वापस मुंबई नहीं जाऊंगा।  


बस डर था कि कहीं संक्रमण न हो जाए


हजारीबाग के ही रहने वाले जावेद ने बताया कि मुझे वहां रहने और खाने में ज्यादा परेशानी तो नहीं हुई। बस यह डर हमेशा सताता रहता था कि कहीं मुझे संक्रमण न हो जाए। अभी मैं होम क्वारैंटाइन हूं। रेस्ट करूंगा। इसके बाद ही सोचूंगा कि वापस जाना है या नहीं।


एक टाइम खाकर गुजारा किया


गोड्‌डा निवासी रिजवान ने बताया कि मैं वेल्डिंग का काम करते थे। लॉकडाउन में बहुत दिक्कत हुई। उन्होंने बताया कि पैसे खत्म होने के बाद वे मांग कर खाना खा रहे थे। कई बार एक वक्त का खाना मिलता था। अब उनका भी गांव से जाने का विचार नहीं है।


किसी तरह गुजारा कर लिया, अब वापस नहीं जाऊंगा


गिरिडीह निवासी प्रदीप यादव मुंबई में ड्राइवर का काम करते थे। उनके साथ उनकी पत्नी और दो छोटे-छोटे बच्चे पहली बार फ्लाइट से सफर कर रांची पहुंचे। प्रदीप ने बताया कि लॉकडाउन में बहुत समस्या हुई। किसी तरह गुजारा कर लिया। वहां भी कुछ लाेग सुविधा दे रहे थे, खाना खिलाते थे। अब मैं वापस नहीं जाऊंगा। इधर ही कुछ ना कुछ काम कर गुजारा करूंगा।


घर आने का प्रयास किया तो पुलिस जाने नहीं देती थी


हजारीबाग की रहने वाली रीता देवी भी अपने पूरे परिवार के साथ रांची पहुंचीं। उनके पति मुंबई में टाइल्स का काम करते थे। रीता देवी ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान राशन मिल जाता था पर सब्जी नहीं मिलती थी। पुलिस ने बहुत सख्ती कर रखी थी। किसी तरह गुजारा किया। घर आने का प्रयास किया तो पुलिस जाने नहीं देती थी। एक दोस्त ने जानकारी दी फ्लाइट की। इसके बाद हम सभी रांची पहुंच सके। अब वापस नहीं जाना है। यहीं पर काम की तलाश करेंगे।