न्यूयॉर्क टाइम्स से / कोरोना के चलते 22 साल में पहली बार बढ़ सकती है गरीबी की दर, साल के अंत तक दुनिया की 8% आबादी पर गरीबी का खतरा

न्यूयॉर्क टाइम्स से / कोरोना के चलते 22 साल में पहली बार बढ़ सकती है गरीबी की दर, साल के अंत तक दुनिया की 8% आबादी पर गरीबी का खतरा




  • मुंबई में खाने के लिए लाइन में लगे मजदूर। लॉकडाउन के कारण यहां बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों के मजदूर फंसे हुए हैं।मुंबई में खाने के लिए लाइन में लगे मजदूर। लॉकडाउन के कारण यहां बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों के मजदूर फंसे हुए हैं।





  • यूएन के मुताबिक भारत में 2006 से 2016 के बीच 21 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले थे

  • वर्ल्ड बैंक के मुताबिक दक्षिण एशियाई देश 40 साल में सबसे खराब आर्थिक प्रदर्शन करेंगे


दुनियाभर में गरीबी के आंकड़ों में हुआ था सुधार



  • 1990 में दुनिया की 36 फीसदी यानी 190 करोड़ आबादी करीब 143 रुपए प्रतिदिन की कमाई के साथ जी रही थी। लेकिन दक्षिण एशिया और चीन में लगातार विकास के कारण 2016 में यह आंकड़ा 73.4 करोड़ लोगों तक आ गया। यूएन के मुताबिक भारत में 2006 से 2016 के बीच 21 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले थे। बांग्लादेश में शिक्षा, साक्षरता जैसे कार्यक्रमों के कारण साल 2000 से अब तक 3.3 करोड़ लोग गरीबी से उबर गए थे। 

  • हालांकि अब एक्सपर्ट्स ने चिंता जताई है कि कोरोना से हालात विपरीत हो सकते हैं। सरकारें आर्थिक बढ़त के लिए कोशिश कर रही हैं। लेकिन ऐसे में गरीबी के खिलाफ चलाए जा रहे कार्यक्रमों में दिए जाने वाले फंड में कटौती भी कर सकती हैं। 2030 तक संयुक्त राष्ट्र ने गरीबी-भूख हटाने और सभी के लिए शिक्षा का जो सपना देखा है, वो अब केवल सपना ही रह जाएगा। 


भारत में प्रवासी मजदूर परेशान



  • भारत में रातों-रात लॉकडाउन की घोषणा के बाद लाखों प्रवासी मजदूर बेघर और बेरोजगार हो गए हैं। अफ्रीका में भी कुछ हिस्सों में काम पर जाने और लॉकडाउन के कारण लाखों लोग भूख का शिकार हो गए हैं। वहीं, दूसरे देशों से कमाकर घर पैसा भेजने वाले बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गए हैं। ऐसे में मैक्सिको और फिलीपींस जैसे देशों के कई परिवारों की हालत तो बहुत खराब है। 

  • हार्वर्ड विश्वविद्यालय के फ्रांस्वा-जेवियर बैगनॉड सेंटर फॉर हेल्थ एंड ह्यूमन राइट्स के कार्यकारी निदेशक नतालिया लिनोस बताती हैं कि यह त्रासदी चक्रीय है। गरीबी बीमारी की बहुत बड़ी चालक है और बीमारी परिवारों को हमेशा गरीबी में रखती है।

  • नतालिया के मुताबिक जब कोरोनावायरस जैसी महामारी की बात आती है तो गरीब, साधन वालों की तुलना में ज्यादा प्रभावित होते हैं। वे खाने का स्टॉक नहीं कर सकते, जिसका मतलब है उन्हें बार-बार बाहर जाना पड़ेगा और अगर उनके पास काम है तो भी वे उसे घर से नहीं कर सकते। 

  • अभिजीत बनर्जी के मुताबिक, बड़ी आबादी को गरीबी से बचाने के लिए देशों को ज्यादा धन खर्च करना होगा। 90 से ज्यादा देशों ने अंतरराष्ट्रीय मु्द्रा कोष (IMF) से सहायता की मांग की है। दुनिया के कई देश इस वक्त संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में बेहतर हालात वाले राष्ट्रों पर प्रभावितों की मदद के लिए दबाव डाला जा सकता है। कुछ राष्ट्र और सहायता संगठन कर्जमाफी की भी मांग कर रहे हैं।