निरंजना के किनारे मिला था ज्ञान और सिद्धार्थ बन गए थे बुद्ध


भगवान बुद्ध का धरती पर अवतरण ऐसे समय हुआ था जब पृथ्वी पर चारों ओर आडंबर का बोलबाला था। छुआछूत और कर्मकांड चारों और फैला हुआ था। युद्ध में चारों और का राज्य उलझे हुए थे और हिंसा का हर कहीं पर बोलबाला था। ऐसे मुश्किल समय में भगवान बुद्ध ने राजापाठ के सुख का त्याग कर जनता की भलाई का संकल्प लिया और सर्वस्व को छोड़ते हुए संन्यास के मार्ग पर अग्रसर हो गए।


युद्धकला भी सीखी थी भगवान बुद्ध ने
भगवान बुद्ध का जन्म ईसा से 563 साल पहले नेपाल के तराई क्षेत्र में कपिलवस्तु और देवदह के रुक्मिनदेई नामक स्थान पर लुम्बिनी वन में हुआ था। भगवान बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। उनके पिता का नाम शुद्धोदन और माता का नाम मायादेवी था। जन्म के सात दिन बाद ही मां का निधन हो जाने पर उनका पालन-पोषण उनकी मौसी गौतमी के द्वारा किया गया। राजसी ठाट-बाट में पले-बढ़े सिद्धार्थ ने सामान्य शिक्षा के साथ युद्धकला के गुर भी सीखे, लेकिन उनके जीवन में करुणा और सुख-दुख को महसूस करने के भाव उनके अंदर गहराई तक समाए हुए थे।


बचपन में दिख गए थे वैराग्य के लक्षण
सिद्धार्थ में बचपन से ही वैराग्य के लक्षण दिखाई देते थए, इसलिए उनके पिता ने सिद्धार्थ के भोग-विलास के लिए दुनिया के सारे प्रबंध कर दिए। सोलहवें साल में प्रवेश करते ही उनका परिणय संस्कार यशोधरा नाम की युवती के साथ कर दिया। उनके यहां पर एक पुत्र ने भी जन्म लिया था जिसका नाम राहुल था। उनको रास-रंग में रखने के लिए तीन महलों का निर्माण कर उनमें मनोरंजन के सभी साधनों को रखा गया, लेकिन संसार के एश्वर्य और माया-मोह इनको बांध नहीं सके और उन्होंने सर्वस्व का त्याग करते हुए 29 साल की उम्र में संन्यास की राह पकड़ ली। बौद्ध धर्म में इसको महाभनिष्क्रमण कहा गया।


निरंजना नदी के किनारे मिला ज्ञान
घर छोड़ने के बाद उन्होंने अनोमा नदी के किनारे सिर मुडवा कर काषाय वस्त्र धारण किए। सात साल तक वे ज्ञान की खोज में इधर-उधर भटकते रहे । सबसे पहले वह वैशाली के नजदीक सांख्य दर्शन के आचार्य अलार कलाम नामक संन्यासी के आश्रम में गए। इसके बाद वो बोधगया के लिए प्रस्थान कर गए। वहां पर उनकी भेंट कौडिन्य सहित 5 साधको से हुई। 6 साल के कठोर तप के बाद 35 साल की आयु में वैशाख पूर्णिमा की रात को निरंजना नदी के किनारे पीपल के वृक्ष के नीचे उनको ज्ञान की प्राप्ति हुई। ज्ञान प्राप्ति के साथ ही वो सिद्धार्थ तथागत बन गए।


इस तरह सिद्धार्थ बन गए गौतम बुद्ध
ज्ञान प्राप्ति के बाद सिद्धार्थ गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए। बोधगया से भगवान बुद्ध सारनाथ आए और उन्होंने पाँच ब्राह्मण संन्यासियों को प्रथम उपदेश दिया। भगवान बुद्ध के इस प्रथम उपदेश को धर्म चक्र प्रवर्तन के नाम से जाना जाता है। महात्मा बुद्ध ने तपस्या और काल्लिक नाम के दो शूद्रों को बौद्ध धर्म का सबसे पहला अनुयायी बनाया था। उनके प्रमुख शिष्यों में बिम्बिसार, प्रसेनजित और उदयन का नाम आता है। सारनाथ में उन्होंने बौद्धसंघ की स्थापना की थी। महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन का अंतिम समय हिरण्यवती नदी के तट पर स्थित कुशीनारा में बिताया था। वहीं पर उनका महापरिनिर्वाण हुआ था। महापरिनिर्वाण के बाद बुद्ध के अवशेषों को आठ भागों में विभाजित कर दिया गया था।