लघुकथा- ग़लती : डॉ.प्रीति प्रवीण खरे


लघुकथा- ग़लती 

"राहुल,पढ़ाई करो,वरना फिर स्कूल से शिकायत आएगी।इतनी सुबह से जल्दी में कहाँ जा रहे हो?"
हमेशा की तरह माँ की बातों को अनसुना कर राहुल तेज़ी से निकल गया।
ये लड़का भी ना,इससे कुछ भी कहना बेकार है!स्कूल की छुट्टी हुई नहीं,और सुबह से खेल शुरू।अपना सामान कभी व्यवस्थित नहीं रखता!भगवान जाने ये कब ज़िम्मेदार बनेगा!!एक तरफ़ माँ बड़बड़ाए जा रहीं,दूसरी तरफ़ राहुल दौड़ते हुए नूर के घर तक जा पहुँचा,और बाहर से ही...
"नूर जल्दी आजा,खेलने चलें?"
"वो आज नहीं जाएगा!"
"लेकिन उसने ही तो आज मुझे खेलने के लिए बुलाया था"
"बुलाया होगा!लेकिन अब नहीं खेलेगा"
"क्यूँ भला?"
"क्यूँकि वह तुम जैसे ग़ैरज़िम्मेदार लड़के के साथ ना तो खेलेगा और ना ही दोस्ती रखेगा"
नूर की माँ की बातें सुन राहुल का जोश ठंडा पड़ गया।दुखी मन से वह मुड़ा ही था,कि थोड़ी ही दूर पर बड़ा सा साँप मुन्नी को डसने ही वाला था।राहुल ने आव देखा न ताव और साँप को झपट के दूर फेंकने की कोशिश में ख़ुद शिकार बन गया।
"अम्मी जल्दी आओ,देखो राहुल भाई जान को साँप ने काट लिया"
"तू उसकी चालें नहीं समझेगी,करने दे नाटक उसे,तू चुपचाप अंदर आ जा!"
ये लड़का भी ना जाने कैसे-कैसे ढोंग करता है।हाल फ़िलहाल तो ये ख़ुद साँप बन मेरे बेटे के भविष्य को डस रहा है।
"अम्मी जल्दी चलो राहुल भैया बेहोश हो गए....मुन्नी रोए जा रही थी...
"रोना बंद करो"
"ऐ लड़के,तुझे नूर के साथ खेलने को मना क्या कर दिया...तूने नया बहना ढूँढ लिया...इन झूठे बहानों का मुझ पर कोई असर नहीं होने वाला है!चल उठ और दोबारा यहाँ मत आना।
या अल्लाह!इसके मुँह से ये झाग कैसा!!!!
"अम्मी,राहुल भाईजान ने हमें बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी"
"डाँटा ही तो था,इसका मतलब ये थोड़े ही था कि तुम अपनी जान ही दे दो!!"
"या ख़ुदा!!इस लड़के को पहचानने में मुझसे कोई ग़लती तो नहीं हो गई!!”

डॉ.प्रीति प्रवीण खरे
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