कोविड-19 साइड इफेक्ट / क्रेडिट रेटिंग बनाए रखने के लिए कोरोना खर्च पर कैपिंग लगा सकती है सरकार, भारी-भरकम नहीं होगा दूसरा राहत पैकेज
- 1.7 लाख करोड़ रुपए के प्रोत्साहन पैकेज की मार्च में हो चुकी है घोषणा
- अब जीडीपी के 1.5 से 2 फीसदी हिस्से के बराबर प्रोत्साहन पैकेज का ऐलान संभव
नई दिल्ली. केंद्र सरकार कोरोना से निपटने के लिए खर्च किए जाने वाले राहत पैकेज पर कैपिंग लगा सकती है। दो वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि सरकार कोरोना राहत संबंधी कुल प्रोत्साहन पैकेज को 4.5 लाख करोड़ रुपए पर रोक सकती है। सॉवरेन रेटिंग घटने की आशंका में सरकार ऐसा कदम उठा सकती है। रॉयटर्स से बातचीत में एक अधिकारी ने कहा कि हम काफी सतर्क हैं। कई देशों की रेटिंग घटनी शुरू हो गई है और रेटिंग एजेंसियां विकसित और उभरते हुए देशों के साथ अलग-अलग तरीके से व्यवहार कर रही हैं। फिच ने गुरुवार को ही चेताया था कि फिस्कल आउटलुक कमजोर होता है तो भारत की सॉवरेन रेटिंग पर दबाव बढ़ सकता है।
जीडीपी के 1.5 से 2 फीसदी तक का हो सकता है दूसरा प्रोत्साहन पैकेज
प्रोत्साहन पैकेज संबंधी तैयारियों में जुटे अधिकारी ने कहा कि हम पहले ही जीडीपी के 0.8 फीसदी के बराबर प्रोत्साहन पैकेज का ऐलान कर चुके हैं। अब हमारे पास जीडीपी के 1.5 फीसदी से 2 फीसदी तक के प्रोत्साहन पैकेज का स्थान बचा है। सरकार ने कोरोना के आर्थिक प्रभाव से निपटने के लिए मार्च में 1.7 लाख करोड़ रुपए के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की थी। इस पैकेज में गरीबों के लिए कैश ट्रांसफर और अनाज के वितरण का प्रावधान किया गया था।
दूसरे पैकेज की रूपरेखा तैयार
दोनों अधिकारियों ने बताया कि दूसरे प्रोत्साहन पैकेज की रूपरेखा तैयार कर ली गई है। इस पैकेज में नौकरी गंवाने वालों और छोटी-बड़ी कंपनियों को राहत मिल सकती है। कंपनियों के लिए टैक्स में छूट जैसे उपायों की घोषणा हो सकती है। हालांकि, वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं दी।
फिच और एसएंडपी ने आंकी भारत की निवेश ग्रेड रेटिंग
रेटिंग एजेंसी फिच और स्टैंडर्ड एंड पूअर्स (एसएंडपी) दोनों ने हाल ही में भारत की निवेश ग्रेड रेटिंग आंकी है जो जंक रेटिंग से एक पायजान ऊपर है। वहीं मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस एकमात्र ऐसी रेटिंग एजेंसी है जिसने की निवेश ग्रेड रेटिंग को जंक रेटिंग से दो पायदान ऊपर बताया है। कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए लागू किए गए 40 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन से भारत की अर्थव्यवस्था में ठहराव सा आ गया है। कई विशेषज्ञों ने इस साल अर्थव्यवस्था के और भी सिकुड़ने का अनुमान जताया है।
टैक्स कलेक्शन की स्थिति काफी बदतर
एक अन्य अधिकारी ने बताया कि सरकारी राजस्व की स्थिति काफी मुश्किल में है। टैक्स कलेक्शन काफी बुरा है। अधिकारी के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष में 2.1 लाख करोड़ रुपए जुटाने के लिए शुरू किए गए निजीकरण कार्यक्रम के शुरू होने की ही उम्मीद नहीं है। राजकोषीय घाटे को रोकने के लिए सरकार ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री समेत सभी सांसदों की सैलरी में कटौती की है। इसके अलावा सरकारी कर्मचारियों और पेंशनर्स के भत्तों में बढ़ोतरी को रोक दिया है।
पिछड़ सकता है राजकोषीय घाटे का लक्ष्य
केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.5 फीसदी के बराबर का लक्ष्य रखा है। लेकिन कम राजस्व वसूली के कारण इस लक्ष्य को पाना मुश्किल दिख रहा है। अधिकारी का कहना है कि अर्थव्यवस्था के मौजूदा हालात, राजस्व में गिरावट और अर्थव्यवस्था को सरकारी मदद को देखते हुए राजकोषीय घाटा बढ़ने का आशंका है। एक अन्य अधिकारी ने कहा कि राजकोषीय घाटा बढ़ने को देखते हुए सरकार के पास खर्च के लिए सीमित विकल्प हैं।
17 मई तक बढ़ाया लॉकडाउन
केंद्र सरकार ने 3 मई तक चल रहे लॉकडाउन को बढ़ाकर 17 मई तक कर दिया है। इस संबंध में गृह मंत्रालय ने गाइडलाइन जारी कर दी हैं। हालांकि, ग्रीन और ओरेंज जोन में लॉकडाउन में कुछ छूट दी गई हैं। यहां सीमित स्तर पर और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आर्थिक गतिविधियां शुरू की जा सकती हैं।
क्या होती है सॉवरेन रेटिंग
अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां विभिन्न देशों की सरकारों की उधार चुकाने की क्षमता के आधार पर सॉवरेन रेटिंग तय करती हैं। इसके लिए वह इकॉनोमी, मार्केट और राजनीतिक जोखिम को आधार मानती हैं। रेटिंग यह बताती है कि एक देश भविष्य में अपनी देनदारियों को चुका सकेगा या नहीं? यह रेटिंग टॉप इन्वेस्टमेंट ग्रेड से लेकर जंक ग्रेड तक होती हैं। जंक ग्रेड को डिफॉल्ट श्रेणी में माना जाता है।
आउटलुक रिवीजन से तय होती है रेटिंग
एजेंसियां आमतौर पर देशों की रेटिंग आउटलुक रिवीजन के आधार पर तय होती है। आउटलुक रिवीजन निगेटिव, स्टेबल और पॉजीटिव होता है। जिस देश का आउटलुक पॉजिटिव होता है, उसकी रेटिंग के अपग्रेड होने की संभावना ज्यादा रहती है। हालांकि, इसका उल्टा भी हो सकता है। सामान्य तौर पर इकॉनोमिक ग्रोथ, बाहरी कारण और सरकारी खजाने में ज्यादा बदलाव पर रेटिंग बदलती है।
सॉवरेन रेटिंग से पड़ता है ये असर
कई देश अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए दुनियाभर के निवेशकों से कर्ज लेते हैं। यह निवेशक कर्ज देने से पहले रेटिंग पर गौर करते हैं। एजेंसियां क्रेडिट रेटिंग तय करते वक्त समय पर मूलधन और ब्याज जुकाने की क्षमता पर फोकस करती हैं। ज्यादा रेटिंग पर कम जोखिम माना जाता है। इससे ज्यादा रेटिंग वाले देशों को कम ब्याज दरों पर कर्ज मिल जाता है।
भारत में रेटिंग का महत्व
सामान्य तौर पर भारत सरकार विदेशी बाजारों से कर्ज नहीं लेती है। इसलिए क्रेडिट रेटिंग का ज्यादा महत्व नहीं है। लेकिन इसका असर सेंटीमेंट पर पड़ता है। कम रेटिंग के कारण स्टॉक मार्केट से विदेशी निवेशकों के बाहर जाने की संभावना बनी रहती है। इसके अलावा नए निवेश के बंद होने की आशंकी भी रहती है। इसके अलावा ईसीबी के जरिए रकम जुटाने वाले वित्तीय संस्थानों और कंपनियों की उधारी लागत बढ़ जाती है।
यह एजेंसियां करती हैं रेटिंग
आमतौर पर पूरी दुनिया में स्टैंडर्ड एंड पूअर्स (एसएंडपी), फिच और मूडीज इन्वेस्टर्स ही सॉवरेन रेटिंग तय करती हैं। एसएंडपी और फिच रेटिंग के लिए बीबीबी+ (BBB+) को मानक रखती हैं, जबकि मूडीज का मानक बीएए3 (Baa3) है। यह सबसे ऊंची रेटिंग है जो इन्वेस्टमेंट ग्रेड को दर्शाती है।