कविता-  तपती सड़क और नंगे पांव - मीना राय सिंघानी, इंदौर


कविता- 


तपती सड़क और नंगे पांव



 

- मीना राय सिंघानी, इंदौर

 


नन्ही गरीब को तपती सड़क पे नंगे पांव चलते देख के,

दिल रोता हे....दिल रोता हे,

इतना थक चुका गरीब का बच्चा, के पत्थर पर भी सोता है.....

 

पिता कितना मजबूर है, मॉं बेबस है ग़रीबी से,

क्या करे के वो गरीब इस तरह, अपनी ही जिंदा लाश को ढोता है....

 

बेटे को बैलगाड़ी में जोत कर, मॉं का कलेजा फटता है,

किन शब्दों में कहे दर्द वो, यहां और नहीं कोई रस्ता है....

 

खेल सियासी है लेकिन पिस रहा गरीब सत्ता के पाटों में,

कभी भी क्युं इस भीड़ में कोई राजनेता नहीं होता है....

 

हजा़रों जु़बानें मुल्क की, फखत़ सलाह ही देतीं हैं,

क्यों कभी कोई इनके लिए, इनके साथ खड़ा नहीं होता है....

 

बरामदें में खड़ी आलीशान गाड़ीयां, बीसीयों जोड़ी जुते मुझे आज बेमानी से लगते हैं,

के हमारे होते भी क्यों नन्हे पांव, तपती सड़कों पे जलते हैं....

 

बस कसुर इतना हे के गरीब हैं ये, फिर भी इतना दर्द तो ना दे ऐ जिंदगी,

दो जुन रोटी जुटाने के लिए, ये युं भी पल पल मरतें हैं...!!!!

 

by-

Meena raisinghani


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