आज वतन के वासियों, कर लें उनका ध्यान !
 

------------------------- डॉo सत्यवान सौरभ,    

 राष्ट्रीय मेमोरियल डे उन सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक कार्यक्रम के रूप में शुरू किया गया था, जो अमेरिकी गृहयुद्ध के दौरान मारे गए थे। प्रथम विश्व युद्ध के बाद, उन सभी पुरुषों और महिलाओं के सम्मान में इस दिन को मनाया जाता है जिनकी किसी भी युद्ध या सैन्य कार्रवाई में मृत्यु हो गई। गृह युद्ध के वर्षों के दौरान उत्पन्न हुआ मेमोरियल डे 1971 में  आधिकारिक अवकाश बन गया।

मूल रूप से स्मृति दिवस को सजावट दिवस के रूप में जाना जाता था। क्या आपको पता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का  इसका वर्तमान नाम मेमोरियल डे है? पहले यह 30 मई को मनाया जाता था। आपको बता दें कि 30 मई, 1868 को, यह पहली बार गणतंत्र की ग्रैंड आर्मी के जनक जॉन ए लोगान द्वारा घोषित किया गया था, जो पूर्व केंद्रीय नाविकों और सैनिकों का एक संगठन था। 1968 में कांग्रेस द्वारा यूनिफॉर्म मंडे हॉलिडे एक्ट पारित किया गया था ताकि मई में अंतिम सोमवार के रूप में स्मारक दिवस की स्थापना की जा सके, जिसने संघीय कर्मचारियों के लिए तीन दिवसीय सप्ताहांत बनाया था। 1973 में न्यूयॉर्क, मई में अंतिम सोमवार वैधानिक अवकाश के रूप में मेमोरियल डे नामित करने वाला पहला राज्य बना !

इस दिन लोग सैनिकों की कब्रों को सजाते थे। तो, यह फूलों, माल्यार्पण और झंडे के साथ कब्रों को सजाने की परंपरा बन गई। यह उन लोगों की याद के लिए एक दिन है जो देश की सेवा में मारे गए हैं। 1973 में न्यूयॉर्क, वैधानिक अवकाश के रूप में मेमोरियल डे नामित करने वाला पहला राज्य बना। 1800 के दशक के अंत तक, कई और शहरों और समुदायों ने स्मारक दिवस मनाया और विभिन्न राज्यों ने इसे कानूनी अवकाश घोषित किया। प्रथम विश्व युद्ध के बाद, यह उन लोगों को सम्मानित करने की परंपरा बन गई जो अमेरिका युद्ध में मारे गए और पूरे संयुक्त राज्य में राष्ट्रीय अवकाश के रूप में व्यापक रूप से स्थापित हुए। 

भारत भी अपने वीरों की याद में में स्मृति दिवस मनाता है, राष्ट्रीय समर स्मारक या युद्ध स्मारक भारत सरकार द्वारा नई दिल्ली के इंडिया गेट के आसपास के क्षेत्र में अपने सशस्त्र बलों को सम्मानित करने के लिए बनाया गया एक स्मारक है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 25 फरवरी 2019 को इंडिया गेट के पास 44 एकड़ में बना नेशनल वॉर मेमोरियल राष्ट्र को समर्पित किया।

दिल्ली में  इसी इंडिया गेट के पास बना नेशनल वॉर मेमोरियल एक स्मारक जो की स्वतंत्रता से लेकर अब तक की लड़ाइयों में शहीद हुए सैनिकों के सम्मान में बनाया गया है, और इसे राष्ट्रीय समर स्मारक अथार्त नेशनल वॉर मेमोरियल के नाम से जाना जाता है। इस स्मारक को इंडिया गेट के पास मौजूदा छतरी (चंदवा) के आसपास बनाया गया है। स्मारक की दीवार को जमीन के साथ और मौजूदा सौंदर्यशास्त्र के साथ सामंजस्य स्थापित किया है। 1947-48, 1961 (गोवा), 1962 (चीन), 1965, 1971, 1987 (सियाचिन), 1987-88 (श्रीलंका), 1999 (कारगिल), और युद्ध रक्षक जैसे अन्य युद्धों में शहीदों के नाम इस प्रकार आजादी के बाद शहीद हुए 133300  भारतीय सैनिकों के नाम यहां पत्थरों पर लिखे गए हैं।

1960 में सशस्त्र बलों ने पहली बार एक राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का प्रस्ताव रखा था। राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का मुख्य वास्तुकार वीबी डिजाइन लैब  चेन्नई के योगेश चंद्रहासन है। वेब डिज़ाइन लैब को वास्तुशिल्प डिजाइन की अवधारणा के लिए और परियोजना के निर्माण के समन्वय के लिए चुना गया था। इस हेतु एक वैश्विक डिजाइन प्रतियोगिता आयोजित की गई थी और परिणाम अप्रैल 2016 की शुरुआत में घोषित किया गया था और चेन्नई स्थित आर्किटेक्ट्स, वीबी डिजाइन लैब के प्रस्ताव को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के लिए विजेता घोषित किया गया था।

राष्ट्रीय समर स्मारक के बारे में परिकल्पना तो वर्ष 1960 में ही की जा चुकी थी लेकिन विभिन्न कारणों के चलते इसका निर्माण टलता जा रहा था। आखिर वर्ष 2015 में भारत सरकार ने स्मारक के निर्माण को हरी झंडी दिखा दी। वर्ष 2016 सरकार ने वॉर मेमोरियल के डिज़ाइन को लेकर एक प्रतियोगिता का आयोजन किया जिसे नाम दिया गया ”ग्लोबल  डिज़ाइन  कम्पटीशन  फॉर  नेशनल  वॉर  मेमोरियल ”। इस प्रतियोगिता में मुंबई के स्टूडियो  के डिज़ाइन को सबसे अधिक पसंद किया गया और उसी डिज़ाइन के आधार पर राष्ट्रीय समर स्मारक का निर्माण आरम्भ हुआ।

एक लम्बे इंतज़ार के बाद आखिर 1 जनवरी 2019 को स्मारक का निर्माण संपन्न हुआ और 25 फ़रवरी 2019 के दिन भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा राष्ट्रीय समर स्मारक राष्ट्र को समर्पित किया गया। सरकार द्वारा निर्मित यह देश का पहला और सबसे बड़ा सैन्य स्मारक है। सरकार द्वारा निर्मित इसलिये कहा क्योंकि चंडीगढ़ में भी एक सैन्य स्मारक है जो की आम जनता के सहयोग से बना है। यहाँ उन 25942 सैनिकों को सम्मान दिया गया है जिन्होंने देश की रक्षा में अपने प्राण त्याग दिये। चक्रव्यूह रचना से प्रेरणा लेते हुए, 40 एकड़ के क्षेत्र में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का निर्माण किया गया। स्मारक के केंद्र में एक स्तम्भ है जिसमें अमर जवान ज्योति हमेशा प्रज्वलित रहती है। इस स्तम्भ का निर्माण अशोक स्तम्भ की शैली में किया गया है और इसके शीर्ष पर अशोक चक्र की स्थापना की गयी है।

इस स्मारक के ले आउट में एक के बाद एक चार चक्र बनाये गये हैं – जिनमे पहला चक्र ‘अमर चक्र’, दूसरा चक्र ‘वीरता चक्र’, तीसरा चक्र ‘त्याग चक्र’ और चौथा चक्र ‘रक्षक चक्र’ है। प्रसिद्ध मूर्तिकार श्री राम सुतार द्वारा कांस्य निर्मित छः भित्ति चित्र यहाँ वीरता चक्र की गैलरी में लगाये गये हैं जो की अब तक लड़ी गयी छः प्रमुख लड़ाइयों को दर्शाते हैं।इसी तरह, 25942 शहीद सैनिकों को सम्मान देने के लिए चक्रव्यूह शैली में छः दीवारों का निर्माण किया गया है जिन पर लगे ग्रेनाइट पर उन शहीदों के नाम लिखे गये हैं। इनके नाम के साथ – साथ इनका पद और रेजिमेंट भी दर्शाया गया है।

सबसे बाहरी चक्र अथार्त रक्षक चक्र में 600 से अधिक घने वृक्षों की पंक्तियाँ हैं, जो देश की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने वाले सैनिकों का प्रतिनिधित्व करती हैं। मुख्य परिसर के अलावा इंडिया गेट के सी-हेक्सागन क्षेत्र के उत्तरी किनारे पर एक परम योद्धा स्थल पार्क भी बनाया गया है। इस पार्क में 21 परमवीर चक्र विजेताओं की कांस्य प्रतिमायें लगी हुई हैं। यहाँ उन सैनिकों को भी सम्मान दिया गया है जिहोने संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों में अपने प्राण गंवा दिये।
राष्ट्रीय समर स्मारक इंडिया गेट के पीछे है। अतः यहाँ पहुंचना आसान है। नज़दीकी मेट्रो स्टेशन केंद्रीय सचिवालय है जिसके गेट नंबर तीन से बाहर आकर आप ऑटो द्वारा इंडिया गेट पहुँच सकते हैं। वैसे मेट्रो स्टेशन से दूरी मात्र 2 किलोमीटर ही है। इसलिये आप पैदल भी राजपथ पर सैर करते हुए जा सकते हैं।

इसको देखने के बाद मन में एक ही बात मन में आती है, 'घर जाकर बताना कि उनके सुनहरे कल के लिए हमने आज अपना बलिदान दे दिया।' वीरों के बलिदान के सामने तो ब्रह्माण्ड नतमस्तक है, हमें उनकी यादों को कभी भूलना नहीं चाहिए और उनके परिवार का देवी-देवताओं से भी बढ़कर मान-सम्मान और हर समय सहयोग करना चाहिए, हम उन वीरों के उस ऋण के कर्जदार है जो कभी चुकाया नहीं जा सकता-
आज वतन के वासियों, कर लें उनका ध्यान !

शान देश की जो बने, देकर अपनी जान !!
दिल्ली में बने राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का यही संदेश है। इस सन्देश को हर पल हमें याद रखना है और हर क्षण आगे पहुँचाना है !

-- डॉo सत्यवान सौरभ,   


रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, दिल्ली यूनिवर्सिटी, 

कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,