जीने की राह / परमशक्ति की ओर छलांग लगाने का अवसर

जीने की राह / परमशक्ति की ओर छलांग लगाने का अवसर



हर किसी को बहुत अखरेगा जब किनारा बिल्कुल पास दिख रहा हो और नाव डूब जाए। कोरोना के इस दौर में पूरा देश लॉकडाउन का कड़वा-मीठा स्वाद चख चुका है। हम एक ऐसे किनारे लग रहे हैं, जहां गहराई है, लहरें हैं, खाई है। बाहर की दुनिया से कटकर अपनी एक निजी दुनिया में थम से गए हैं। यह हाउस अरेस्ट कुछ लोगों को बहुत तकलीफ दे रहा होगा। कई ने अपनी जीवनशैली ऐसी बना ली थी कि घर उनके लिए धर्मशाला होकर रह गए थे, जहां सिर्फ खाने, सोने और भोग-विलास के लिए आया करते थे। लेकिन, इसे बंदिश न समझिएगा।




ऐसा कहा गया है कि दुनिया को ठुकराने से दुनिया फिर मिलती है। स्वामी रामतीर्थ कहा करते थे- ‘भागती फिरती थी दुनिया, जब तलबगार थे हम। अब बेतलब हो गए तो दुनिया मिलने को बेकरार है’। अध्यात्म की दृष्टि से कहें तो यह साकार से निराकार होने का समय है। ईश्वर को दो रूपों में देखा गया है- साकार यानी धर्मस्थल, मूर्ति, पूजा-पाठ। और निराकार मतलब अनुभूति, योग, ध्यान। पहले हम साकार दुनिया में रहते थे, अब कुदरत ने निराकार से मिलाने का मौका दिया है।



दार्शनिक कहा करते थे परमशक्ति को पाने के लिए एक छलांग लगाना पड़ती है जो जंपिंग बोर्ड से लगती है। इस समय हमारा परिवार जंपिंग बोर्ड है। अवसर मिला है तो लगाइए एक छलांग उस परमशक्ति की ओर जिसे शांति कहते हैं, आनंद कहते हैं, सहजता कहते हैं, सरलता कहते हैं।



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