ईमानदारी के अभाव में बस्तियां बसी, इंसान उजड़ा

अन्तर्राष्ट्रीय ईमानदारी दिवस, 30 अप्रैल 2020 पर विशेष
ईमानदारी के अभाव में बस्तियां बसी, इंसान उजड़ा
-ः ललित गर्ग:-

सफल एवं सार्थक जीवन के लिये जीवन में ईमानदारी और सच्चाई के गुणों का होना आवश्यक हैं। अक्सर देखा गया हैं जो इन्सान सच्चाई की राह पर चलता हैं वह ईमानदार भी होता हैं तथा अपने कर्तव्यों के लिए भी उतना ही जागरूक होता हैं जितना कि वह अपने अधिकारों को लेकर होता हैं। ईमानदारी की उपेक्षा के नाम पर पनप रहा नया नजरिया न केवल घातक है बल्कि मानव अस्तित्व पर खतरे का एक गंभीर संकेत भी है। जिसके परिणामों के रूप में हम आतंकवाद को, सांप्रदायिकता को, प्रांतीयता एवं राजनीतिक-व्यापारिक अपराधों को पनपते हुए देख सकते हैं, जिनकी निष्पत्तियां देश एवं दुनिया में युद्ध, हिंसा, नफरत, द्वेष, लोभ, गलाकाट प्रतिस्पर्धा, रिश्ते में दरारें, भ्रष्टाचार आदि के रूप में दिखाई देती हैं, जिसका ताजा उदाहरण कोरोना वायरस है। सर्वाधिक प्रभाव पर्यावरणीय असंतुलन एवं प्रदूषण के रूप में देखने को मिलता है। चंद हाथों में बेईमानी, भ्रष्टाचार एवं अनैतिकता से सिमटी समृद्धि की वजह से बड़े और तथाकथित संपन्न लोग ही नहीं बल्कि देश एवं दुनिया का एक बड़ा तबका मानवीयता से शून्य अपसंस्कृति का शिकार हो गया है। राजनीति, मानवीय रिश्तों, उपभोक्ता और वैश्विक संबंधों एवं शिक्षा में ईमानदारी पर सीधे संवाद को प्रोत्साहित करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा 30 अप्रैल को ईमानदारी दिवस मनाया जाता है। इसका आविष्कार एम. हिर्श गोल्डबर्ग ने किया था।
भारत में भी बेईमानी एवं गैर कानूनी तरीके से बनाई गई अकूत संपत्ति के खुलासे चैकाते रहे हंै, वह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि सत्ता की मदद से कई जिम्मेदार व्यक्ति धनकुबेर बन कर भ्रष्टाचार को पंख लगाकर आसमां छूते हुए नैतिकता की धज्जियां उड़ाते रहे हंै। चाणक्य ने कहा था कि जिस तरह अपनी जिह्ना पर रखे शहद या हलाहल को न चखना असंभव है, उसी प्रकार सत्ताधारी या उसके परिवार का भ्रष्टमुक्त होना भी असंभव है। जिस प्रकार पानी के अन्दर मछली पानी पी रही है या नहीं, जानना कठिन है, उसी प्रकार शासकों या उनके परिवारजनों के पैसा लेने या न लेने के बारे में जानना भी असंभव है। आज जबकि चहूं ओर करोड़ों रुपये की अनियमिताओं के साथ-साथ अनेक भ्रष्टाचार के मामले सम्पूर्ण राष्ट्रीय गरिमा एवं पवित्रता को धूमिल किये हुए हैं। ऐसा लगता है नैतिकता एवं प्रामाणिकता प्रश्नचिह्न बनकर आदर्शों की दीवारों पर टंग गयी है। शायद इन्हीं विकराल स्थितियों से सहमी विश्व व्यवस्था में ईमानदारी को मजबूती देने के लिये ही अन्तर्राष्ट्रीय ईमानदारी दिवस को मनाये जाने की आवश्यकता महसूस हुई है।
ईमानदारी दिवस राजनीतिक झूठों, फरेब एवं धोखाधड़ी की रोकथाम के लिए एक अभियान है, आम जनजीवन में बढ़ती अनैतिकता एवं बेईमानी, राजनेताओं के बढ़ते झूठ एवं व्यवसाय में अनैतिकता एवं अप्रामाणिकता ने जीवन को जटिल बना दिया है।
उन्नत एवं शांतिपूर्ण जीवन के लिये ईमानदारी आधारभूत तत्व है। हमारे यहाँ एक कहावत हैं कि सच परेशान हो सकता हैं मगर पराजित नहीं। आज हम इसके प्रत्यक्ष उदाहरण भी देख सकते हैं। जहाँ स्वार्थी, अपने कर्तव्यों से विमुख, गलत कर्मों में लिप्त तथा सरकारी पदों पर होने पर भी घूस लेने वाले लोग कुछ समय आराम की जिन्दगी भले ही जीते हो, मगर जल्द ही ये लोग जेल की सलाखों के पीछे हो जाते हैं।
कोरोना महामारी एवं महासंकट के समय भी कुछ बेईमान एवं लालची लोगों ने अपने स्वार्थ एवं लालच के जबडे़ फैला रखे हैं, यूं समझना चाहिए कि इन बेईमान लोगों ने जीने का सही अर्थ ही खो दिया है। इन बेईमान लोगों ने धन के अम्बार भले लगा लिये हो, पर वास्तविक शांति एवं सुख की दृष्टि से ये भटक रहे हैं। ना जाने कितने अंधेरों में स्वयं डूबे हैं और अनेक इंसानों का जीवन खतरे में डाल देते हैं, भौतिक समृद्धि बटोरकर भी न जाने कितनी रिक्तताओं की पीड़ा इनको झेलनी पड़ रही है। जीवन-वैषम्य कहां बांट पाया अपनों के बीच अपनापन। इनके कारण बस्तियां बस रही हैं मगर आदमी उजड़ता जा रहा है। पूरी दुनिया में ईमानदारी का ह्रास हुआ है। जिसके कारण हिंसा, आतंक, अन्याय, शोषण, संग्रह, झूठ, चोरी, कालाबाजारी महामारी जैसे-अनैतिक अपराध एवं स्थितियां पनपी हैं। धर्म, जाति और प्रांत के नाम पर नए संदर्भों में समस्याओं ने पंख फैलाये हैं। मानवीय संबंधों के बीच एकता, अखण्डता, सहयोगिता, सह-अस्तित्व, प्रेम, करुणा अहिंसा और उदारता की पहचान घटी है। आज किसको छू पाता है मन की सूखी संवेदना की जमीं पर औरों का दुःख दर्द? बहुत कठिन है उफनती नदी में ईमानदारी की नौका को सही दिशा में ले चलना और मुकाम तक पहुंचाना।
तेजी से बढ़ता बेईमानी एवं भ्रष्टाचार का दौर किसी एक देश का दर्द नहीं रहा। इसने दुनिया के हर मानव के दिल को जख्मी बनाया है। अब इसे रोकने के लिए प्रतीक्षा नहीं, प्रक्रिया आवश्यक है। यदि इस बेईमानी एवं भ्रष्टाचार को और अधिक समय मिला तो हम इसके काले अंधेरों के इतने आदी हो जायेंगे कि हमारी सोच, जमीर और क्रियाशीलता जड़ीभूत बन जायेंगी। नए समाधान के लिए ठंडा खून और ठंडा विचार नहीं, क्रांतिकारी बदलाव के आग की तपन चाहिए। विश्व ईमानदारी दिवस ऐसे ही क्रांति का माध्यम बने, तभी इसकी आयोजना की सार्थकता है।
भारत में पिछले सात दशकों में सत्ता और स्वार्थ ने आदर्श एवं ईमानदार शासन-व्यवस्था को पूर्णता देने में नैतिक कायरता दिखाई है। इसकी वजह से लोगों में विश्वास इस कदर उठ गया कि चैराहे पर खड़े आदमी को सही रास्ता दिखाने वाला भी झूठा-सा लगता है। आंखें उस चेहरे पर सचाई की साक्षी ढूंढती हैं। पहली बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस संकल्प कि न मैं खाऊंगा और न खाने दूंगा, ईमानदार शासन व्यवस्था की सुप्रभात का आभास कराया है। वरना जीवनशैली में इतना ठहराव आगया था कि साहस बुझ-सा गया। आशायें जड़ीभूत-सी हो गई। आज देश की समृद्धि से भी ज्यादा देश की साख जरूरी है। विश्व के मानचित्र में भारत गरीब होते हुए भी अपनी साख सुरक्षित रख पाया तो सिर्फ इसलिए कि उसके पास विरासत से प्राप्त ऊंचा चरित्र है, ठोस प्रामाणिकता है, सुशासन निर्माण के नए सपने हैं और कभी न थकने वाले क्रियाशील आदर्श हैं। साख खोने पर सीख कितनी दी जाए, संस्कृति नहीं बचती। आज हमारे कंधे भी इसीलिए झुक गए कि बुराइयों का बोझ सहना हमारी आदत तो थी नहीं पर लक्ष्य चयन में हम भूल कर बैठे। नशीले अहसास में रास्ते गलत पकड़ लिए और इसीलिए बुराइयों की भीड़ में हमारे साथ गलत साथी, संस्कार, सलाह, सहयोग जुड़ते गए। जब सभी कुछ गलत हो तो भला उसकी जोड़, बाकी, गुणा या भाग का फल सही कैसे आएगा?
ईमानदारी की स्थापना के लिये हमारे भीतर नीति और निष्ठा के साथ गहरी जागृति की जरूरत है। नीतियां सिर्फ शब्दों में हो और निष्ठा पर संदेह की परतें पड़ने लगें तो भला उपलब्धियों का आंकड़ा वजनदार कैसे होगा? बिना जागती आंखों के सुरक्षा की साक्षी भी कैसी। एक वफादार अच्छा सपना देखनेे पर भी इसलिए मालिक द्वारा तत्काल हटा दिया जाता है कि पहरेदारी में सपनों का ख्याल चोर को खुला आमंत्रण है। कोई भी ऐसी समस्या नहीं है कि जिसका समाधान न खोजा जा सके। आइए, ईमानदारी दिवस पर स्वयं को एवं जिम्मेदारी ओढ़ने वाले हाथों को इतना मजबूत और विश्वसनीय बनायें कि निर्माण का हर क्षण इतिहास बने। नए भविष्य का निर्माण हो। हर रास्ता मुकाम तक ले जाए। यह दिवस अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों समय का आलेख है। अतीत हमारे जीए गए अनुभवों का निचोड़ है। वर्तमान संकल्प है नया दायित्व ओढ़ निर्माण की चुनौतियों को झेलने की तैयारी का और भविष्य एक सफल प्रयत्न है सुबह की अगवानी में दरवाजा खोल संभावनाओं की पहचानने का। यही वह क्षण है जिसकी हमें प्रतीक्षा थी और यही वह सोच है जिसका आह्वान है अभी और इसी क्षण ईमानदारी को अपनी जीवनशैली बनाने का, क्योंकि हमारा भविष्य हमारे हाथों में है। भले हमारे पास कार, कोठी और कुर्सी न हो लेकिन चारित्रिक गुणों की काबिलियत अवश्य हो क्योंकि इसी काबिलियत के बल पर हम अपने आपको महाशक्तिशाली बना सकेगे।

 (ललित गर्ग)
लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
सदस्य: राजभाषा समिति, गृहमंत्रालय, भारत सरकार
अध्यक्ष: सुखी परिवार फाउण्डेशन
ई-253, सरस्वती कंुज अपार्टमेंट
25 आई. पी. एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
मो. 9811051133