किसान मित्र व दीदी को झटका, कृषक बंधु नियुक्ति की राह प्रशस्त


- नियुक्ति के खिलाफ दायर याचिका खारिज
 जबलपुर। मप्र उच्च न्यायालय के न्यायाधीश श्री संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने एक अहम फैसले में कहा कि केंद्र सरकार की वह नीति सही व वैधानिक है, जिसके तहत खेतों में किसानों की मदद के लिए किसान मित्र व किसान दीदी की जगह कृषक बंधु की नियुक्ति करने का प्रावधान है। इस मत के साथ एकलपीठ ने वह याचिका खारिज कर दी, जो इस नीति को चुनौती देते हुए दायर की गई थी। न्यायालय के इस फैसले से राज्य सरकार की ओर से की जा रही कृषक बंधुओं की नियुक्ति की राह प्रशस्त हो गई। पन्ना जिले में कार्यरत किसान मित्र भरत कुमार चौधरी व किसान दीदी प्रभा कुशवाहा सहित अन्य की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि पूर्व में सरकार की कृषक नीति के तहत खेतों में किसानों की मदद करने, उनसे संपर्करत रहकर उनकी समस्याओं का निदान करवाने व उनका जीवन स्तर उन्नयन करने के लिए हर दो गांव के बीच किसान मित्र व किसान दीदी की नियुक्ति करने का प्रावधान किया गया। इसके तहत याचिकाकर्ताओं को किसान मित्र व किसान दीदी का कार्य करने के लिए प्रशिक्षण भी दिया गया। वे पन्ना जिले के देहात में यह काम कर रहे थे। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता एके जैन ने तर्क दिया कि 10 दिसंबर को नई नीति जारी की गई। इसके तहत नए दिशानिर्देश जारी कर किसान मित्र व किसान दीदी की नियुक्ति निरस्त कर दी गई। उनकी जगह किसान बंधु नियुक्त करने का फैसला नीति के अंतर्गत लिया गया। यह केवल राजनीतिक परिदृश्य बदलने के कारण किया गया, जो अनुचित है। इस पर उपमहाधिवक्ता प्रवीण दुबे ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं की किसान मित्र या किसान दीदी के पद पर नियुक्ति नहीं की गई थी वरन यह किसानों की सेवा के लिए निर्धारित कार्य था। इस कार्य में यदि याचिकाकर्ता योग्य हैं तो वे भी कृषक बंंधु की नियुक्ति प्रक्रिया में भाग ले सकते हैं। न्यायालय ने अंतिम सुनवाई के बाद सरकार के तर्कों से सहमति जताते हुए याचिका निरस्त कर दी।
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