कलामंदिर की विशेष होली गोष्ठी संपन्न

कलामंदिर की विशेष होली गोष्ठी संपन्न
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     हिंदी भवन भोपाल में साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था "कलामंदिर" की विशेष होली/फागुन गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें एक से एक बढ़कर होली/ फागुन, पर केंद्रित गीत एवं हास्य-व्यंग्य रचनाएँ प्रस्तुत की गई, पुष्पवर्षा कर फूलों की होली भी खेली गई जिससे वातावरण उल्लासपूर्ण और रसमय हो गया।
कॉर्यक्रम की अध्यक्षता डा गौरीशंकर शर्मा गौरीश ने की, मुख्य अतिथि श्री जवाहर कर्णावट जी, सारस्वत अतिथि श्री किशन तिवारी और विशेष अतिथि श्री प्रेम सक्सेना भी मंचासीन रहे। 
     कॉर्यक्रम का संचालन, संस्था सचिव गोकुल सोनी ने किया। इस अवसर पर डा मोहन तिवारी आनंद का उनके उपन्यास "वैदेही" पर संस्कृति विभाग से इक्यावन हजार का पुरस्कार प्राप्त होने के उपलक्ष्य में सम्मान किया गया।
     सरस्वती वंदना श्रीमती साधना श्रीवास्तव् एवम अनीता श्रीवास्तव द्वारा संयुक्त रूप से प्रस्तुत करने के उपरांत राकेश वर्मा, हैरत ने हास्य पैरोडी सुनाते हुए पढ़ा- "होली आई रे कन्हाई कैसे खेलूं, सूखीं हैं नल की टोंटियां" श्री मनीष श्रीवास्तव बादल ने सुन्दर दोहे प्रस्तुत करते हुए पढ़ा-"भूल गीले शिकवे सभी, गले मिले सब लोग। मेल-मिलापों का बना होली पर संयोग।" सुरेंद्र जैन 'सरस' की पंक्तिया सराही गई-"प्यार बंटता है यार होली में, बैर घटता है यार होली में।" डा मोहन तिवारी आनंद ने देवर भाभी की होली प्रस्तुत की- "देवर जी के गाल पर भाभी मली गुलाल, शर्माया देवर खड़ा, मुंह बंदर सा लाल" वहीँ गोकुल सोनी ने जीजा साली की होली प्रस्तुत करते हुए छंद पढ़ा- "राते जीजा गये ससुराल, कि सारिन के संग खेलेंगे होली, सारी धरी थी शैतान की अम्मा, सो दूध में नींद की गोली घोरी।" सुनीता शर्मा ने सुन्दर गीत "मधुमासी गीतों का मौसम, रंग उड़ाऊँ में।" प्रस्तुत किया। डा जयजयराम आनंद ने पढ़ा- "पूँछ रही है सोनचिरैया, कैसे मनाऊँ होली" कमल किशोर दुबे के दोहे सराहे गये- "मचाएं धूम हम मिलकर, चलो इस बार होली में।" सुमन ओबेराय ने वर्तमान परिस्थितियों पर पढा- "यह कैसी होली अबकी बेर" आशा श्रीवास्तव का होली गीत- "रंग मत डारे रे सांवरिया, मेरो गूजर मारे रे।" को पसंद किया गया। देवेंद्र कुमार रावत की रचना- "गोबर का गुलाल लिए, वो भौजाई के भाव की" भी मनोरंजक रही। प्रमोद पुष्कर ने भी अपनी रचना से खूब मनोरंजन किया और प्रेम सक्सेना तो अपनी रचनाओं से छा गए। व्यंग्य कवि राजेंद्र गट्टानी एवम कवि धूमकेतु ने भी खूब समां बांधा। डा किशन तिवारी की गजल भी श्रेष्ठ रही। प्रो एजाज आजाद ने भक्त प्रह्लाद को याद करते हुए पढ़ा- "यातनाओं से तपे खम्ब हों, जिनपर रेंग सके चींटी।" डा रामवल्लभ आचार्य ने विविध आयामी होली पर गीत पढ़ा तथा रमेश श्रीवास्तव नन्द ने भी रचना प्रस्तुत की। दुर्गारानी श्रीवास्तव का गीत- होली के रंग रंग जाओ, री सखी फागुन आया ने रसवर्षा की। विश्वनाथ शर्मा विमल ने सुन्दर दोहे प्रस्तुत करते हुए पढ़ा-"तन के ऊपर रंग चढ़ा, मन भी रंग अनंत, कुटिया तजके चल पड़ा, होली खेलन संत। डा अशोक कुमार तिवारी की पंक्तियाँ भी दृष्टव्य हैं-"होली पर भूले सभी, फर्क गरीब अमीर" सुधा दुबे ने मधुर फाग गीत "बैठी आम की डार, बोले कोयलिया" प्रस्तुत किया। चरणजीत सिंह कुकरेजा ने सुनाया-"हौले हौले घुल जाएंगे, होली के रंग दाग। साधना श्रीवास्तव ने पर्यावरण रक्षा का संदेश देते हुए पढ़ा-'पेड़ों को काट ना जलाओ होली" डा विमल शर्मा ने रसवर्षा करते हुए पढ़ा-"मुझ पर क्यों रंग डारे गोरी, तेरे रंग रंगा हूँ मैं" बिहारीलाल सोनी अनुज ने भी मधुर गीत की प्रस्तुति दी।अनीता श्रीवास्तव खरे ने होली गीत "घर में होली कैसे खेलूं री मोरे सांवरिया के संग" प्रस्तुत किया। सुरेश पटवा जी ने मुक्तछंद कविता में होली की सांस्कृतिक उपादेयता को अभिव्यक्त किया। डा वंदना मिश्रा ने कॅरोना वायरस पर पढ़ा- "आओ मिलकर पूंछ लें, होली पर हालचाल" अरविन्द मिश्र ने देश की तात्कालिक हालात पर पढ़ा-"होली के सब रंग, आज हुए बदरंग" डा ब्रज भूषण मिश्र की पंक्तियाँ सबके मन भाईं-"ले लाल रंग उद्धत हुआ, वन में खड़ा पलास।" डा अल्पना वर्मा ने राधा की पीड़ा अपनी रचना में अभिव्यक्त की "कान्हा तुम बिन होली भाये न" 
अंत में अध्यक्ष डा गौरीश ने होली पर एक हास्य नाटिका प्रस्तुत की एवम कमल किशोर दुबे ने होली पर लोगों के लिए टाइटल दोहे पढ़े। 
इस अवसर पर शहर के गणमान्य साहित्यकार युगेश शर्मा, अशोक निर्मल, आशा सिन्हा कपूर, विमल भंडारी, हेमराज कुर्मी, अभिषेक लाडगे, जवाहर सिंह, अल्पना वर्मा, आदि उपस्थित रहे। 


गोकुल सोनी
सचिव, कलामंदिर भोपाल