*धन तेरस से भाई दूज तक पांच दिन तक चलने बाला दीपमाला पर्व*







ज्योतिषाचार्य डॉ एच सी जैन

 

*धनतेरस के दिन वर्तन खरीदना,ध्यान करना,धन्वन्तरि जी की पूजा  श्रेष्ठ फल देती है।*

 

ज्योतिषाचार्य डॉ एच सी जैन ने बताया 25 अक्टूबर शुक्रवार को कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का त्योहार मनाया जाएगा धार्मिक शास्त्रों के अनुसार इस दिन धनवंतरी और लक्ष्मी जी का जन्म हुआ था इसलिए इसे धनतेरस कहते हैं। जैन आगम के अनुसार धन तेरस को धन्य तेरस कहते है।भगवान महावीर ने इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिए योग निरोध में चले गए थे तीन दिन बाद दीपावली के दिन  भगवान महावीर जी को निर्माण प्राप्त हुआ तभी से यह दिन धन्य होगया और धन तेरस के नाम से प्रसिद्ध होगया । इस दिन वैध धनवंतरी के जन्म के अलावा इस दिन माता लक्ष्मी और कुबेर की भी पूजा होती है। भगवान धनवंतरी समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए इस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाते है और सभी डॉक्टर जीवन मे सफल होने हर वर्ष वैध धन्वन्तरि का पूजन करते है। धन्वन्तरि जी समुन्दर से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए इस दिन कोई भी चाँदी का बर्तन खरीदने की परंपरा है। जो जीवन को शांत चित्त उज्ज्वल बनाती है।

 

धनतेरस-  पूजन का शुभमुहूर्त :-

शाम 07:10 से 08:15 तक 

प्रदोष काल

05:42 से 08:15 तक 

वृषभ काल

06:51 से 08:47 तक

पूजन ,ध्यान के लिए श्रेष्ठ है।

 

 

ज्योतिषाचार्य डॉ एच सी जैन ने कहा कि 26 अक्टूबर शनिवार को दोपहर 03:46 बजे बाद चतुदर्शी लग जयेगी जो 27 अक्टूबर रविवार को दोपहर 12:22 बजे तक ही है इसलिए 26 अक्टूबर शनिवार को ही मनाई जाएगी।

नरक चतुर्दशी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतर्दशी नरक चतुर्दशी,यम चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी, कहा जाता है। इस दिन चाँद नही निकलता तो यम राज भटक जाते है वह न भटके इसलिए उनके प्रकाश केलिए एक दीपक घर के दरवाजे पर रखने का विधान है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान है। दिवाली से एक दिन पहले मनाए जाने की वजह से नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली भी कहा जाता है। इस दिन यमुना या किसी पवित्र नदी में  प्रातः तेल लगाकर और अपामार्ग की पत्ती जल में डाल कर स्नान का काफी महत्व है। मान्यता है कि नरक चतुर्दर्शी के दिन  ऐसा कर यमुना में स्नान करने से मनुष्य को यमलोक का दर्शन नहीं करना पड़ता। 

 

*नरक चतुर्दशी*-स्नान मुहूर्त:-

अभ्यंग स्नान समय  प्रातः 05:15 से 06:29 तक

*दीपदान मुहूर्त*:- शाम 06 से 07 बजे तक

 

दीपावली पर 27 अक्टूबर रविवार को ही क्यों

ज्योतिषाचार्य डॉ एच सी जैन ने बताया कि 27 अक्टूबर रविवार  को दोपहर 12:22 बजे से अमावश्या तिथि प्रारम्भ होगी जो 28 अक्टूबर सोमवार को  केवल 09:08 बजे प्रातः काल तक रहेगी। इसलिए दीपावली का पर शाम को प्रदोष काल , स्थिर वृष लग्न रात्रि स्थिर सिंह लग्न और निशीथ काल मे किया जाता है जो 27 अक्टूबर को ही है।

जैन ने कहा दीवाली साल का सबसे प्रसिद्ध त्योहार है। दीवाली उत्सव धनतेरस से शुरू होता है और भैया दूज पर समाप्त होता है। अधिकतर प्रान्तों में दीवाली की अवधि पाँच दिनों की होती है, जबकि महाराष्ट्र में दीवाली उत्सव एक दिन पहले गोवत्स द्वादशी के दिन शुरू हो जाता है। कहते है दीपावली पर्व राम के रावण पर विजय कर अयोध्या लौटने की खुशी में श्रृंखलाबद्ध दिप प्रिजवलन के रूप मे असत्य पर सत्य की विजय अज्ञान पर प्रकाश के रूप में,बुराई पर अच्छाई के रूप में ही मनाया जाने बाला पर्व है । जैन धर्म अनुसार भगवान महावीर स्वामी जी ने धनतेरस के दिन से निर्वाण के लिए तीसरे और चौथे ध्यान में जाने  के लिए ध्यान लगाया था और इसदिन निर्वाण प्राप्त किया इसी उपलक्ष में जैन महावीर निर्वाण महोत्सव के रूप में भी मनाते है । इस दिन से जैन वीर निर्वाण सम्बत 2546 प्रारम्भ होगा।

इस अवसर पर समूल रूप से बुराई की सफाई ही नही अपित लोग अपने घरों की सफाई रंगाई पुताई भी उत्सव स्वरूप करते है इसलिए सबसे प्रसिद्ध त्यौहार दीपावली होजाता है।

इन पाँच दिनों के दीवाली उत्सव में विभिन्न अनुष्ठानों का पालन किया जाता है और देवी लक्ष्मी के साथ-साथ कई अन्य देवी देवताओं की पूजा की जाती है। हालाँकि दीवाली पूजा के दौरान देवी लक्ष्मी सबसे महत्वपूर्ण देवी होती हैं। पाँच दिनों के दीवाली उत्सव में अमावस्या का दिन सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है और इसे लक्ष्मी पूजा, लक्ष्मी-गणेश पूजा और दीवाली पूजा के नाम से जाना जाता है।

 

दीवाली पूजा केवल परिवारों में ही नहीं, बल्कि कार्यालयों में भी की जाती है। पारम्परिक हिन्दु व्यवसायियों के लिए दीवाली पूजा का दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है। इस दिन स्याही की बोतल, कलम और नये बही-खातों की पूजा की जाती है। दावात और लेखनी पर देवी महाकाली की पूजा कर दावात और लेखनी को पवित्र किया जाता है और नये बही-खातों पर देवी सरस्वती की पूजा कर बही-खातों को भी पवित्र किया जाता है।

 

दीवाली के दिन लक्ष्मी पूजा करने के लिए सबसे शुभ समय सूर्यास्त के बाद का होता है। सूर्यास्त के बाद के समय को प्रदोष कहा जाता है। प्रदोष के समय व्याप्त अमावस्या तिथि दीवाली पूजा के लिए विशेष महत्वपूर्ण होती है। अतः दीवाली पूजा का दिन अमावस्या और प्रदोष के इस योग पर ही निर्धारित किया जाता है। इसलिए प्रदोष काल का मुहूर्त लक्ष्मी पूजा के लिए सर्वश्रेस्ठ होता है और यदि यह मुहूर्त एक घटी के लिए भी उपलब्ध हो तो भी इसे पूजा के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

 *जैन के अनुसार दीपाली पूजा मुहूर्त*:- वही खाते सभालने दीपावली रचना करने शुभ समय- सुबह 09:12 बजे से 12:01 बजे तक।

 

फेक्ट्री दूर दराज व्यवसाय स्थल पूजन- दोपहर 01:25  से 02:50 बजे तक।

*दीपावली पूजन मुहूर्त*:- प्रदोष काल सहित शुभ व अमृत बेला मे शाम 05:38 से 08:50 बजे तक।

स्थिर वृष लग्न,प्रदोष काल, शुभ,अमृत सभी का सयोग शाम 06:44 से 08:39 बजे तक सर्व श्रेठ समय।

निशीथ काल रात्रि 11:39 बजे से 12:33 बजे रात तक।

स्थिर सिंह लग्न रात्रि 01:15 से 02:50 बजे तक। 

जैन ने कहा कि निशीथ काल से रात्रि 04 बजे तक लक्ष्मी साधना करने बाले के घर वर्ष भर धन की कोई कमी नही आती इसलिए इस समय बहुत लोग विधि -विधान पूर्वक लक्ष्मी की जाप ध्यान साधना करते है।

 

 

 

*गोवर्धन पूजा 28 अक्टूबर सोमबार को*

ज्योतिषाचार्य डॉ एच सी जैन ने बताया कि इसवार 28 अक्टूम्बर सोमवार को अमावस्या तिथि सुबह 09:08 बजे समाप्त होजाएगी इसी समय कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा लग जायेगी इसलिए इस दिन 

दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर यह पर्व मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट भी किया जाता है। कृष्ण जी के अबतार के बाद द्वापुर युग से गोवर्धन  का पर्व प्रारम्भ हुआ। इस दिन गो बंश अर्थात गाय, बैल, बछड़े आदि को स्न्नान कराकर उनकी पूजा की जाती है । गो माता की पूजा के बाद आरती उतारी जाती है। प्रदक्षिणा भी करना चाहिए। और गोबर से गोवर्धन  पर्वत बनाकर  जल, मोली,रोली,चावल,फूल,दही, तैल का दीपक जलाकर पूजा कर पर्वत की  परिक्रमा करते हैं । इसी दिन भगवान कृष्ण को 56 भोग बनाकर लगाया जाता है।  

*गोवर्धन पूजा मुहूर्त* :-

गोवर्धन पूजा सायंकाल मुहूर्त

03:25 से 05:39 तक

 

*भाई दूज 29 अक्टूबर मंगलवार*

दिवाली के बाद भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है। यह पर्व दिवाली के 2 दिन बाद कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आता है। 5 दिनों तक चलने वाले महापर्व का यह आखिरी पर्व होता है। भाई दूज में बहने अपने भाईयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी आरती उतारती हैं और भाई की लंबी आयु और अच्छे भविष्य की कामना करती हैं।

 

*भाई दूज- मंगलवार, 29 अक्टूबर*

ज्योतिषाचार्य डॉ एच सी जैन ने बताया 29 अक्टूम्बर को भाई दूज पूरे दिन रात 03:47 बजे तक रहेगी।

भाई बहिन के अमर त्योहारो में दो त्योहार एक राखी जिसमे भाई बहिन की रक्षा करने का संकल्प लेता है दूसरा भाई दूज जिसमे बहिन भाई की लम्बी उम्र की कमान करती है। यह दीपावली के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को मनाया जाता है।

इसदिन भाई को  बहिन के घर गंगा जल युक्त जल से स्नान करके फिर बहिन के घर ही भोजन करना चाहिए।

बहिन भाई के  दोपहर के समय शुभ मुहूर्त में तिलक कर  नारियल देकर  आरती उत्तर कर अपने भाई की लम्बी उम्र की कामना ईस्वर से करती है।

इस दिन बहिन के घर भोजन अवश्य करना चाहिए ।

*भाई दूज का मुहूर्त*:-

भाई दूज तिलक का समय 

01:11 बजे  से 03:25 तक दोपहर में।