शशांक शेखर ने संभाला पदभार, मध्यप्रदेश के नए महाधिवक्ता बने


जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के महाधिवक्ता शशांक शेखर जबलपुर पहुंचे। जहां उन्होंने सोमवार सुबह महाधिवक्ता का पदभार संभाल लिया। इस दौरान जबलपुर एसपी और कलेक्टर समेत प्रशासनिक अधिकारी मौजूद रहे। अधिकारियों ने उन्हें शुभकामनाएं दीं। प्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता राजेंद्र तिवारी की मौत के बाद उन्हें महाधिवक्ता का प्रभार सौंपा गया था। दूसरी ओर महाधिवक्ता कार्यालय में पहुंचे शशांक शेखर का सभी अधिवक्ताओं ने जोरदार स्वागत किया। प्रदेश के 18वें और सबसे कम उम्र के महाधिवक्ता बनने का गौरव शशांक शेखर को हासिल हुआ है। एजी ऑफिस की कमान संभालते ही पूरे जोश के साथ महाधिवक्ता ने अपना काम शुरू कर दिया है। उन्होंने अपने काम करने का तरीका भी सभी शासकीय अधिवक्ताओं को बता दिया। शशांक शेखर ने साथी अधिवक्ताओं से कहा कि उनकी पहली प्राथमिकता अदालतों में बढ़ रहे मामलों की लंबित संख्या को कम करना है। इसके लिए महाधिवक्ता कार्यालय से प्रयास किए जाएंगे, कार्यालय की पूरी टीम को इस काम में लगाया जाएगा। महाधिवक्ता का पद संभालने के बाद शशांक शेखर ने जिम्मेदारी देने के लिए सीएम कमलनाथ के साथ अपने गुरु और पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल विवेक तन्खा का भी शुक्रिया अदा किया। 
गौरतलब है कि शशांक शेखर को राज्यपाल ने प्रदेश सरकार का पूर्णकालिक महाधिवक्ता नियुक्त कर दिया है। राज्य के विधि एवं विधायी कार्य विभाग सचिव ने रविवार को इस संबंध में हाईकोर्ट रजिस्ट्रार को औपचारिक आदेश जारी कर दिए।
शशांक शेखर को उनके कार्यकारी महाधिवक्ता नियुक्त किए जाने की तारीख से महाधिवक्ता नियुक्त किया गया है। विदित हो कि पूर्व महाधिवक्ता राजेंद्र तिवारी के निधन के बाद 18 मई 2019 को शशांक शेखर को हाईकोर्ट का कार्यकारी महाधिवक्ता बनाया गया था और 3 दिन बाद 21 मई को उन्होंने प्रभार संभाला था।
1998 में हुआ नामांकन : रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद शशांक शेखर ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में 1998 में अपना नामांकन कराया। वर्ष 2001 में उन्हें पैनल लॉयर नियुक्त किया था। 2002 में उन्होंने स्वतंत्र रूप से वकालत शुरू की और 2008 में मध्यप्रदेश की स्टैंडिंग काउंसिल के केंद्रीय प्रशासनिक प्राधिकरण जबलपुर में शामिल हुए। शशांक शेखर का जन्म 6 फरवरी 1973 को जबलपुर में हुआ। उनके पिता स्व. सुभाष दुग्वेकर जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे जबकि माता स्व. छाया दुग्वेकर स्कूल में शिक्षक थीं।