दिल निसार का
कोई भरोसा कैसै करें, जीत हार का,
रंगें हिना में रंगत कहाँ, उस बहार का।
कहते कभी टूटेगा नहीं, डोर प्यार का,
सब कह रहे लेलोना मजा ऐतबार का।
क्या खूब खेलें खेला नया, संस्कार का।
रंगत सबोंने देखा दिले, बेकरार का।
अपने हुए बेगाने समय, इंतज़ार का।
सबने भुलाया वादे वफा, वो क़रार का।
नैना झरे माहिर ये बड़े, निज जुगाड़ का।
स्वार्थ हरे, राही ये बड़े, जन सुधार का।
नादान हम नादानी करें, मार, खार का,
ये हैं चतुर नित वादा करें, जग निखार का।
'अनि' को पता ये मुद्दा सही, है विचार का,
आई घड़ी सुंदर ये बड़ी, दिल निसार का।
अनिरुद्ध कुमार सिंह,
धनबाद, झारखंड।